उत्तराखंड में नैनीताल के देवस्थल 3.6 मीटर आप्टिकल दूरबीन(टेलेस्कोप)ने लम्बे समय के बाद गामा किरण विस्फोट(जी.आर.बी.)से किलोनोवा उत्सर्जन की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुछ बड़े सितारों की मृत्यु गामकरण और विस्फोटक खलबली के रूप में मानी जाती है। ये कहा जाता है कि जी.आर.बी.एक सेकेंड में उतनी ऊर्जा उत्सर्जित करेगा जितनी सूर्य अपने जीवनकाल में उत्सर्जित करेगा।
नैनीताल में एरीज के देवस्थल दूरबीन के वैज्ञानिक गामा किरण विस्फोट में देवस्थल की दूरबीन के योगदान से बहुत उत्साहित हैं। उनका कहना है कि किरणों के उत्सर्जन के देखे गए समय पैमाने के आधार पर दशकों से आम तौर पर जी.आर.बी.को दो भागों में विभाजित किया गया है। 11 दिसंबर 2021 को नासा की नील गेहर्ल्स स्विफ्ट ऑब्जर्वेटरी और फर्मी गामा-रे स्पेस टेलीस्कोप ने लगभग 1 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित आकाशगंगा के बाहरी इलाके से उच्च ऊर्जा प्रकाश के विस्फोट (जी.आर.बी.211211A)का पता लगाया। इस जी.आर.बी.के बाद की चमक(आफ्टर ग्लो)का अध्ययन करने के लिए खगोलविदों ने अंतरिक्ष और पृथ्वी पर कई दूरबीनों का उपयोग किया।
इसमें आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज(एरीज)की 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल
टेलीस्कोप ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जी.आर.बी.आफ्टर ग्लो के वर्णक्रमीय ऊर्जा वितरण को आमतौर पर गैर-तापीय उत्सर्जन(सिंक्रोट्रॉन विकिरण के कारण)के संदर्भ में समझाया जाता है। हालांकि, इस घटना में 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप के कई मंद दृश्यों का उपयोग करके बनाए गए आफ्टर ग्लो के वर्णक्रमीय ऊर्जा वितरण में तापीय और गैर-तापीय उत्सर्जन दोनों शामिल हैं।
3.6 मीटर दूरबीन और 4Kx4K सी.सी.डी.इमेजर के डेटा में से आफ्टरग्लो योगदान को घटाने के बाद, वैज्ञानिकों ने पाया है कि बहुतरंग दैर्ध्य डेटा को अतिरिक्त तापीय वर्णक्रम द्वारा अच्छी तरह से व्याख्या किया जा सकता है और इस तापीय उत्सर्जन को किलोनोवा उत्सर्जन के संदर्भ में समझा जा सकता है। यह पहली खगोलीय घटना है जिसमे एक लंबे जी.आर.बी.के साथ देवस्थल की दूरबीन ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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