क्या खुद ही अपनी कश्ती डुबोना चाहती है..कांग्रेस

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आलेख : वरिष्ठ, युवा, बुद्धिमान अपना पक्ष रखते है और अपना तर्क रखते हैं. इसके साथ ही अपने हितों की बात करते  हैं. इसका मतलब बगावत नहीं था, बल्कि यह 23 पार्टी नेताओं की बूढ़ी और मरणासन्न 135 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की रणनीति तथा वास्तविक आत्मनिरीक्षण की कोशिश थी.

जैसा कि कभी कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके एम.जे. अकबर ने कहा, ‘उनका पत्र टकराव के बजाय स्पष्टता और बगावत के बजाय पुनरुद्धार की मांग करता है.’ फिर भी उन्हें गद्दार और जयचंद कहा जा रहा है. भरोसा खो चुके नेतृत्व से भला कोई क्या उम्मीद कर सकता है?

यह शुतुर्मुर्गी रवैया कई वर्षों से चल रहा है और अब तो वह खुद की मौत मरती दिख रही है. ईश्वर उसी की मदद करता है, जो खुद की मदद करता है.

कांग्रेस के मामले में यहां तक कि भगवान भी मदद करने में संकोच करेंगे. पत्र लिखने वाले नेता चंद्रशेखर, मोहन धारिया और कृष्ण कांत की तरह युवा तुर्क नहीं हैं, जो इंदिरा गांधी जैसे पराक्रमी नेता को चुनौती देने का साहस कर सकते थे. उनमें से ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक हैं, तो कुछ युवा नेता हैं.

जो कांग्रेस के मूल दर्शन में विश्वास करते हैं. लेकिन वे बहुत चिंतित और निराश हैं कि मोदी की अभूतपूर्व लोकप्रियता तथा बेजोड़ वक्तृत्व कौशल के साथ जनता के साथ जुड़ने व संवाद करने की क्षमता के आगे उनकी सौ साल से ज्यादा पुरानी पार्टी का राज्य दर राज्य से सफाया होता जा रहा है. इसके अलावा, सत्तारूढ़ भाजपा के पास अमित शाह की निर्मम संगठनात्मक मशीनरी, जमीन पर आरएसएस के अनुशासित और प्रतिबद्ध कैडर, युवा, बुद्धिमान, प्रेरक और तकनीक प्रेमी पार्टी के पदाधिकारियों की एक फौज और लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए अकूत धन है, जहां कुछ और काम नहीं करता है.

  

वर्ष 2019 में कांग्रेस का वोट शेयर 19.5 फीसदी तक गिर गया, कार्यकर्ताओं का उत्साह खत्म हो गया और उसके लड़ने की इच्छाशक्ति खो गई। पार्टी के नेता उन लोगों की नब्ज भांपने में नाकाम रहे, जिनकी नजर में भविष्य के लिए, कांग्रेस भाजपा का एक विश्वसनीय विकल्प नहीं है।

इन नेताओं की चिट्ठी अपने सोते हुए शीर्ष नेतृत्व को जगाने के लिहाज से बहुत बेहतर थी, और अस्तित्वगत संकटों से अवगत कराती थी, जिसका सामना पार्टी कर रही है और आगे की विशाल चुनौतियों का एहसास कराती थी। शीर्ष पर नेतृत्व के संकट को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

एक वैकल्पिक, विश्वसनीय और उल्लेखनीय दृष्टि के साथ सक्षम, प्रभावी, ऊर्जावान और प्रेरणादायक नेतृत्व के बिना, जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़े दुश्मन खेमे से चौबीसों घंटे लड़ने के लिए तैयार रहे बिना कांग्रेस पास कोई मौका नहीं है.

और जब पिछले छह वर्षों के चुनावी नतीजे बताते हैं कि शीर्ष नेतृत्व ने अपना काम नहीं किया है, तो विधिवत एक सामूहिक नेतृत्व चुने जाने की आवश्यकता है, जो सांगठनिक चुनाव कराकर देश भर में कार्यकर्ताओं को पुनर्जीवित, तरोताजा और फिर से संगठित कर सके.

यह उन नेताओं द्वारा किया गया समझदार और ईमानदार प्रयास है, जिन्होंने पार्टी की सेवा में अपना जीवन बिताया है. यह कुछ लालची और सत्ता के भूखे विद्रोहियों का तख्तापलट नहीं है। पुराने, चाटुकार, पिछलग्गू के दबाव में उनका कद घटाना, हाशिये पर डालना और उनकी अनदेखी करना राजनीतिक हाराकिरी है.

पचास वर्षीय राहुल गांधी के अब तक के राजनीतिक कार्यकलाप ने यह साबित किया है कि वह नरेंद्र मोदी को परास्त करने में अक्षम हैं. सोनिया गांधी का खराब स्वास्थ्य उन्हें समय पर कदम उठाने से रोकता है. इसी वजह से गोवा में जब उनकी पार्टी ने ज्यादा सीटें जीतीं, तब भी कांग्रेस वहां सरकार नहीं बना सकी.

और यदि मध्य प्रदेश में सरकार बनी भी, तो खत्म हो गई; और एक महीने के लंबे रहस्य और सार्वजनिक छीछालेदर के बाद राजस्थान की सरकार किसी तरह बच सकी. राहुल ने भले ही अध्यक्ष पद स्वीकार नहीं किया है, लेकिन वह अब भी फैसले लेते हैं। वाड्रा होने के कारण प्रियंका मोदी का मुकाबला नहीं कर सकती हैं. कठोर वास्तविकता यह है कि एक भी कांग्रेसी नेता मोदी की बराबरी नहीं करता है।

लेकिन कांग्रेस के पास अब भी भारी प्रतिभा, प्रशासनिक अनुभव और कई राज्यों में वास्तविक जनाधार है, जिसे अगर नव निर्वाचित नेतृत्व द्वारा सफल होने की महात्वाकांक्षा के साथ ध्यान केंद्रित करके दोहन किया जाता है, तो वह भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। कांग्रेस का पुनरुद्धार और एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरना भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा।

कपिल सिब्बल एक जुझारू वकील हैं, जो तर्क में सत्ता पक्ष के किसी भी नेता को आड़े हाथों ले सकते हैं. मनीष तिवारी भी सफल वकील हैं और हिंदी व अंग्रेजी बोलने वाले प्रभावी प्रवक्ता हैं. राजीव गांधी के समय में युवा नेता रहे आनंद शर्मा एक प्रभावी संचालक और सक्षम प्रशासक हैं. 19 पुस्तकों के प्रणेता शशि थरूर की अंग्रेजी पर गहरी पकड़ है

वे आत्मविश्वासी वक्ता और बहसकर्ता हैं तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रशंसा होती है। वह मीडिया के भी प्रिय हैं और किसी भी पार्टी के ताज के लिए गहना हो सकते हैं. दूसरे पूर्व युवा नेता गुलाम नबी आजाद तीन पीढ़ियों से गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान रहे हैं. ऐसे प्रतिष्ठित नेताओं को छोड़ देने पर पार्टी खुद का नुकसान करेगी लगता है गांधी परिवार कह रहा है कि इस धरती पर कौन है, जो हमें अपनी पार्टी को खत्म करने से रोक सकता है अब क्या अंत ऐसा ही होगा, क्या  पार्टी  को एक मजबूत नेतृत्व करने वाला लीडर मिल पायगा..या  नैया पूरी तरह डूब जायगी

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