‘ज़ूम’ आतंकियों का शिकारी, दो गोलियां लगने के बाद भी दुश्मनों से लड़ता रहा..

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जम्मू-कश्मीर में सेना को एक इलाके में आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली. आर्मी ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया. इस ऑपरेशन में सेना ने अपने असॉल्ट डॉग यानी हमलावर कुत्ते ‘ज़ूम’ को भी शामिल किया था. ‘जूम’ को एक घर में आतंकियों का पता लगाना था. उसने अपना काम बखूबी निभाते हुए आतंकियों की पहचान की. आतंकियों पर हमला किया, लेकिन इस दौरान आतंकियों की गोलीबारी में ‘ज़ूम’ खुद भी घायल हो गया. लेकिन उसकी मदद से सेना दो आतंकियों को मार गिराने में कामयाब रही. वहीं ‘ज़ूम’ का सेना के वेटेरिनरी हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है.

ज़ूम ने आतंकियों को काट खाया!

9 अक्टूबर की देर रात दक्षिण कश्मीर के तंगपावा इलाके में आतंकियों की मौजूदगी का इनपुट मिला. सेना ने सोमवार, 10 अक्टूबर की सुबह ‘ज़ूम’ को एक घर के अंदर भेजा था, जहां आतंकवादी छिपे हुए थे. ‘ज़ूम’ ने मकान में घुसते ही आतंकियों पर हमला कर दिया था. हालांकि इस दौरान आतंकियों ने ‘ज़ूम’ को दो गोलियां मारी और वह गंभीर रूप से घायल हो गया. लेकिन ‘ज़ूम’ ने आतंकियों को नहीं छोड़ा. 

चिनार कॉर्प्स के मुताबिक, इस ऑपरेशन के दौरान ‘ज़ूम’ गोली लगने के बावजूद भी आतंकियों से लड़ता रहा, जिसके चलते सुरक्षाबलों ने आतंकियों का मार गिराया. ‘ज़ूम’ को श्रीनगर में सेना के वेटेरिनरी अस्पताल ले जाया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है. 

इस एनकाउंटर में लश्कर-ए-तैयबा के दो आतंकियों को मार गिराया गया जबकि सेना के दो जवान भी घायल हुए हैं. इस ऑपरेशन को भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर अंजाम दिया था. 

सेना ने अपने असॉल्ड डॉग ‘ज़ूम’ का वीडियो शेयर किया है

सेना की चिनार कॉर्प्स ने इस ऑपरेशन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले ‘ज़ूम’ का वीडियो जारी कर उसके जल्द ठीक होने की कामना की है.

सेना के सर्च ऑपरेशन सबसे आगे होते हैं असॉल्ट डॉग
‘जूम’ दक्षिण कश्मीर में कई सक्रिय ऑपरेशन में हिस्सा ले चुका है. सेना के अधिकारियों के मुताबिक ‘जूम’ बेहद प्रशिक्षित, आक्रामक और वफादार डॉग है. आर्मी के इस असॉल्ट डॉग को छिपे हुए आतंकियों का पता लगाने और उनके खात्मे की ट्रेनिंग दी गई है.

WION की अगस्त में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक आर्मी के असॉल्ट डॉग को छिपे हुए आतंकवादियों की लोकेशन और उनके हथियारों, गोला-बारूद का पता लगाने के लिए सबसे पहले भेजा जाता है. इन कुत्तों पर कैमरे लगे होते हैं, जिसके जरिए कंट्रोल रूम से निगरानी की जाती है.

इन कुत्तों को छिपे हुए आतंकवादियों की लोकेशन में बिना नजर में आए एंट्री की ट्रेनिंग दी जाती है. इन्हें ऑपरेशनों के दौरान न भौंकने की भी ट्रेनिंग दी जाती है. अगर आतंकी इन कुत्तों को देख लें, तो ऐसी स्थिति में ये कुत्ते आतंकियों पर हमला करने में भी माहिर होते हैं.

डॉग यूनिट में किस नस्ल के कुत्ते होते हैं, क्या करते हैं?


भारतीय सेना की डॉग यूनिट में कुत्तों की कई नस्लें हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें लैब्राडोर , जर्मन शेफर्ड , बेल्जियम मालिंस और ग्रेट माउंटेन स्विस डॉग शामिल हैं. भारतीय नस्लों में मुधोल हाउंड भी डॉग यूनिट का हिस्सा हैं.

सेना के कुत्तों द्वारा कई तरह की ड्यूटीज़ की जाती हैं. इसमें गार्ड ड्यूटी, पेट्रोलिंग, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस (IED) सहित विस्फोटकों को सूंघना, सुरंग का पता लगाना, ड्रग्स सहित प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघना, संभावित टारगेट पर हमला करना, मलबे का पता लगाना, छिपे हुए भगोड़ों और आतंकवादियों का पता करना शामिल है.

सेना के हर कुत्ते की देखरेख की पूरी जिम्‍मेदारी एक डॉग हैंडलर की होती है. उसे कुत्ते के खाने-पीने से लेकर साफ-सफाई का ध्‍यान रखना होता है और ड्यूटी के समय सभी काम कराने के लिए हैंडलर ही जिम्मेदार होता है.

सेना के कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प सेंटर एंड स्कूल में प्रशिक्षित किया जाता है. कुत्तों की नस्ल और योग्यता के आधार पर उन्हें सेना में शामिल करने से पहले कई चीजों में प्रशिक्षित किया जाता है. ये कुत्ते रिटायर होने से पहले लगभग आठ साल तक सेवा में रहते हैं. आर्मी में शामिल किए गए डॉग्‍स को उनकी सेवाओं के लिए सम्‍मानित भी किया जाता है.

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