उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं पर रोक लगाने की मांग को लेकर भाकपा माले कार्यकर्ताओं द्वारा राज्यव्यापी कार्यक्रम के तहत उत्तराखण्ड के राज्यपाल, मुख्यमंत्री व पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड पुलिस को उपजिलाधिकारी हल्द्वानी के माध्यम से ज्ञापन भेजा गया।
भाकपा माले जिला कमेटी की ओर से भेजे गए ज्ञापन में कहा गया कि, “उत्तराखंड में जिस तरह से भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं सिलसिलेवार तरीके से हो रही हैं, वह बेहद अफसोसजनक है. इससे अधिक निंदनीय, उनमें शासन और प्रशासनिक मशीनरी की भूमिका है, जो किसी भी तरह इस तरह के उत्पात और उन्माद को रोकने की कोशिश नहीं करती, जिनके निशाने पर राज्य में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं.
इस संदर्भ में पुरोला का घटनाक्रम चिंताजनक और हैरत में डालने वाला है. पुरोला में दो व्यक्ति, एक नाबालिग बच्ची के साथ थे. आरोप है कि ये दोनों लोग नाबालिग को भगा कर ले जा रहे थे. आरोपियों में एक मुस्लिम और एक हिंदू हैं. दोनों की गिरफ्तारी हो गयी. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को मौका मिल गया कि वे खुल कर उन्माद फैलाने की राजनीति कर सकें. घटना और उसमें कार्यवाही हुए आधा महीना हो चुका है. लेकिन उसके बावजूद पुरोला और पूरी यमुना घाटी में तनाव का माहौल बनाए रखने के प्रयास निरंतर जारी हैं.
आरोपियों का किसी तरह का बचाव न किए जाने के बावजूद, निरंतर उग्र माहौल बनाए रखना और इसके लिए विभिन्न बाज़ारों को बंद रखना, एक सुनियोजित कार्यवाही प्रतीत होती है, जिसके निशाने पर अलसंख्यक समाज के वे लोग भी हैं, जिनका कोई अपराध नहीं है. सभी अल्पसंख्यकों की दुकानों पर दुकान खाली करने का पोस्टर चस्पा करना, असंवैधानिक,गैरकानूनी और आपराधिक कृत्य है. इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए.
इससे पहले भी भीड़ हिंसा और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने में उत्तराखंड सरकार, प्रशासन और पुलिस का रवैया बेहद लचर रहा है.”
माले जिला सचिव डा कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “माननीय उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि नफरत भरे भाषण के मामले में पुलिस स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करे. उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक को उच्चतम न्यायालय का आदेश याद दिलाये जाने के बावजूद 20 अप्रैल को हनोल में हुई धर्म सभा में दिये गए नफरत भरे भाषणों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई.
पुरोला की घटना की बाद भी अल्पसंख्यकों की संपत्ति को क्षति पहुंचाने की कार्यवाही एवं आह्वान हुए, अखबारों में इस आशय के बयान भी नाम सहित प्रकाशित हो रहे हैं. अल्पसंख्यकों को मकान न देने और उन्हें भगाने के आह्वान भी सार्वजनिक तौर पर हो रहे हैं. लेकिन यहाँ भी पुलिस का कार्यवाही न करने वाला रुख कायम है. यह खुले तौर पर उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवमानना है.”
उन्होंने कहा कि, “भीड़ हिंसा, नफरत भरे भाषण और सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं प्रदेश में निरंतर फैलती जा रही हैं. उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना करके भी शासन, प्रशासन और पुलिस इन्हें रोकने के प्रभावी उपाय नहीं करना चाहती. यह कानून और संविधान के शासन के लिए बड़ा खतरा है.”
ऐक्टू ट्रेड यूनियन के जिलाध्यक्ष जोगेंदर लाल ने कहा कि, “कोई भी अपराध करे, उसके विरुद्ध कानून सम्मत कार्यवाही होनी चाहिए. लेकिन अपराध का फैसला, किसी भी सूरत में धार्मिक आधार पर नहीं किया जाना चाहिए और ना ही धर्म के आधार पर बने, धार्मिक घृणा के प्रसारक संगठनों को यह फैसला करने का अधिकार दिया जाना चाहिए. सत्यापन या कोई भी अन्य प्रशासनिक कार्य भी धार्मिक आधार पर न किया जाए.”
ज्ञापन के माध्यम से मांग की गई कि, पुरोला में सामान्य स्थिति बहाल करने और निर्दोष अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए तत्काल ठोस उपाय किए जाएँ. किसी को भी भीड़ हिंसा और नफरत फैलाने की अनुमति न दी जाये. साथ ही राज्य सरकार द्वारा अतिक्रमण हटाने के अभियान को भी, जिस तरह से सांप्रदायिक विभाजन के औज़ार की तरह प्रयोग किया, उस पर भी तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए. उच्चतम न्यायालय द्वारा भीड़ हिंसा रोकने के लिए राज्य एवं जिला स्तर पर नोडल अफसर नियुक्त करने के निर्देशों का तत्काल प्रभावी तौर पर अनुपालन सुनिश्चित करवाया जाये.
ज्ञापन देने वालों में माले ज़िला सचिव डा कैलाश पाण्डेय, ट्रेड यूनियन ऐक्टू जिला अध्यक्ष जोगेंदर लाल, विवेक ठाकुर, चार्वाक आदि शामिल रहे।
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