उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले में दायर जनहित याचिका में विधानसभा से पूछा है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष समेत अन्य आरोपियों से वेतन वसूली पर क्या कार्यवाही की गई है ? मामले की अगली सुनवाई 20 जून को होगी।
मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में आज देहरादून निवासी नेता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि उत्तराखंड की विधानसभा में बैकडोर भर्ती और बड़ा भ्रष्टाचार व अनियमितता हुई है। इस विषय पर विधानसभा ने एक जाँच समीति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया, लेकिन यह घोटाला वर्ष 2000 में राज्य बनने से लेकर अबतक चलता आया, जिसपर सरकार ने भी अनदेखी करी।
इस विषय पर अबतक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभाध्यक्ष और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी है। याचिकि में प्रार्थना की गई है कि भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों की न्यायालय के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराई जाए और सरकारी धन की रिकवरी करी जाए।
न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए 30 नवंबर 2022 को सरकार को 8 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा जबकि विधानसभा ने अपना जवाब न्यायालय में दाखिल कर दिया। याची ने प्रार्थना कर कहा कि बैकडोर भर्ती के माध्यम से भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों, विधानसभाध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय।
अभिजय के अनुसार, विधानसभा ने अपने प्रतिशपथपत्र में कहा की अवैध नियुक्तियां देने के पीछे निचले अधिकारी और तत्कालीन विधानसभाध्यक्ष और तत्कालिन मुख्यमंत्री भी शामिल थे। उन्होंने अपने शपथपत्र में वर्तामान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी कार्मिक विभाग और वित्त विभाग की नोट शीट को अंदेखा कर ऐसी नियुक्ति देने के प्रमाण दिए हैं। अभिजय ने ये भी कहा कि वर्ष 2016 और वर्तमान मुख्यमंत्री पर भी विधानसभा की तरफ से सवाल खड़े किए गए हैं।
आज खंडपीठ ने विधानसभा से पूछा है कि 2003 के शासनादेश के तहत क्या दण्डात्मक कार्यवाही की गई है ?
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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