आयुष्मान कार्ड घोटाला, सरकारी योजनाओं में सेंध ?


देहरादून : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सरकारी योजनाओं में संगठित भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला सामने आया है, जिसने राज्य की नौकरशाही से लेकर प्रशासनिक तंत्र तक को हिला कर रख दिया है। जिला प्रशासन द्वारा कराए गए एक विशेष जांच अभियान में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि निरस्त किए गए 3,323 राशन कार्डों के आधार पर 9,428 फर्जी आयुष्मान कार्ड बनाए गए, जिससे सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।
यह घोटाला उस वक्त सामने आया जब जिला प्रशासन ने 1,36,676 निष्क्रिय राशन कार्डों की समीक्षा शुरू की। डीएम सविन बंसल के आदेश पर खाद्य आपूर्ति विभाग ने जांच की, जिसमें पाया गया कि 3,323 कार्डों को पहले ही अमान्य घोषित किया जा चुका था। इन निरस्त कार्डों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को भेज दी गई थी, ताकि उन्हें आयुष्मान योजना के दायरे से बाहर रखा जाए। इसके बावजूद इन कार्डों के आधार पर हजारों फर्जी आयुष्मान भारत कार्ड बना दिए गए।
घोटाले की परतें..कौन जिम्मेदार ?
इस मामले में अब दो विभागों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।
खाद्य आपूर्ति विभाग का कहना है कि उसने समय पर अपात्र कार्डधारकों की सूची स्वास्थ्य विभाग को भेज दी थी और उचित सतर्कता बरती गई थी।
वहीं राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण का दावा है कि आयुष्मान कार्ड बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑटोमेटेड है और कार्ड राशन कार्ड नंबरों के आधार पर सिस्टम द्वारा खुद-ब-खुद जनरेट किए गए। यदि राशन कार्ड अमान्य थे, तो इसकी सूचना और अपडेट खाद्य विभाग से मिलनी चाहिए थी।
इस लापरवाही के चलते हजारों अपात्र लोगों ने मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाया, जिसका खामियाजा सरकारी खजाने और जरूरतमंद जनता को भुगतना पड़ा।
एफआईआर दर्ज, जांच शुरू
राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण के अतिरिक्त निदेशक अमित शर्मा की तहरीर पर देहरादून के राजपुर थाना और शहर कोतवाली में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। अब यह जांच होगी कि..किन अधिकारियों की लापरवाही, मिलीभगत या भ्रष्टाचार के कारण यह घोटाला हुआ? किसने निरस्त कार्डों का डेटा जानबूझकर या लापरवाही से साझा किया? किस स्तर पर आयुष्मान कार्डों की सत्यापन प्रक्रिया में चूक हुई?
सूत्रों के अनुसार, दो जिला स्तरीय अधिकारी सीधे तौर पर इस घोटाले में संलिप्त पाए गए हैं—एक अधिकारी ने निरस्त कार्डों का डेटा भेजा, जबकि दूसरे ने उनके आधार पर कार्ड बनवाए। इन अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की तलवार लटक रही है।
कितना बड़ा है मामला?
देहरादून जिले में कुल 3,87,954 राशन कार्ड हैं, जिनमें से अब तक केवल 75,756 कार्डों का ही सत्यापन हो सका है। जांच में यह सामने आया कि फर्जी आयुष्मान कार्ड धारकों ने सरकारी अस्पतालों और निजी सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज का लाभ उठाया, जिससे सरकार को करोड़ों का वित्तीय नुकसान हुआ।
विशेषज्ञ इसे किसी तकनीकी खामी का नहीं, बल्कि एक सुनियोजित और संगठित भ्रष्टाचार का मामला मान रहे हैं, जिसमें विभिन्न विभागों के कर्मचारियों की मिलीभगत से योजनाओं को नुकसान पहुंचाया गया।
सरकार की सख्त कार्रवाई
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लिया है और दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। डीएम सविन बंसल ने भी जिला पूर्ति अधिकारी को स्पष्ट आदेश दिए हैं कि निरस्त कार्डों पर विधिक कार्रवाई की जाए और दोषियों की जवाबदेही तय हो।
वहीं, राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने अब तक 150 फर्जी आयुष्मान कार्डों को निरस्त कर दिया है और शेष की जांच प्रक्रिया जारी है।
अब क्या बदलेगा?
इस घोटाले के बाद नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि आयुष्मान कार्ड से इलाज शुरू करने से पहले मरीज के आधार और राशन कार्ड का पता और पहचान सत्यापित करें।
विभागों के बीच डेटा साझा करने की प्रणाली में पारदर्शिता और अपडेट सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी समाधान लाए जाएंगे।
आधिकारिक जिम्मेदारियों की पुनः समीक्षा कर उन कर्मचारियों की पहचान की जाएगी, जो इस तरह की लापरवाही या साजिश में शामिल रहे हैं।
देहरादून में सामने आए इस घोटाले ने यह साफ कर दिया है कि अगर प्रशासनिक सतर्कता और पारदर्शिता न हो, तो जनहित की सबसे जरूरी योजनाएं भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ सकती हैं। यह मामला उत्तराखंड सरकार के लिए चेतावनी है कि तकनीकी व्यवस्था को मानवीय निगरानी से जोड़ना आवश्यक है, ताकि किसी भी प्रकार के दुरुपयोग पर समय रहते अंकुश लगाया जा सके।
अब देखना यह है कि सरकार और प्रशासन इस पूरे मामले को कितनी पारदर्शिता और कठोरता से निपटाते हैं और दोषियों को क्या सज़ा मिलती है। क्योंकि यह केवल एक घोटाले का मामला नहीं, बल्कि लाखों गरीबों के अधिकारों पर डाका है।


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