देश मे 18वीं लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे 4 जून को आ गए हैं. अब सरकार बनाने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है. इस इलेक्शन ने कई मामलों में चौंकाया, जिसमें जेल में बैठे उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना और जीतना भी शामिल है. खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह के अलावा आतंकवादी गतिविधियों के चलते पांच सालों से तिहाड़ में बंद कश्मीरी नेता अब्दुल राशिद ने भी जीत पाई. अब एक अनोखी स्थिति बन गई है, जिसमें सवाल ही सवाल हैं।
डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से चुनाव जीता, जबकि शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय रहते हुए ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता उमर अब्दुल्ला को हराया. दोनों ही आतंकवादी गतिविधियों के लिए अलग-अलग राज्यों से, अलग जेलों में बंद हैं. कानून को देखें तो अपराध काफी गंभीर हैं. लेकिन चूंकि संविधान जेल में बैठे लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति देता है तो वे जीत गए. अब सवाल है कि आगे क्या?
यहां तीन बातें हैं, जो उलझी हुई हैं।
क्या वे शपथ ले सकेंगे?
क्या इसके लिए उन्हें जेल से छोड़ा जाएगा?
या क्या कैद में रहते हुए ही वे सरकार चलाएंगे?
क्या बताते हैं_ नियम..
शुरुआत पहले सवाल से. रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 के अनुसार, 18 साल की उम्र का, सही दिमागी सेहत वाला कोई भी भारतीय चुनावी प्रोसेस का हिस्सा बन सकता है. जेल या लीगल कस्टडी में रहते हुए कैदी भी इस श्रेणी में आते हैं, जबकि आरोप साबित न हुए हों. इंजीनियर राशिद और अमृतपाल सिंह को इसलिए ही चुनाव लड़ने की छूट मिली. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, सभी सांसदों और विधायकों में से लगभग एक तिहाई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
जानिये – सर्वोच्च अदालत ने क्या कहा था…
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में कहा था कि सांसद और विधायक अगर अपराध के दोषी पाए जाएंगे तो उन्हें तुरंत अपना पद छोड़ना होगा. इस फैसले ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट की धारा 8(4) को एक तरह से रद्द कर दिया, जो दोषी सांसदों को अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के लिए तीन महीने का समय देती थी।
इसका मतलब ये है कि अगर इंजीनियर राशिद या अमृतपाल सिंह को उनके आरोपों के लिए दोषी पाया गया, तो वे तत्काल प्रभाव से लोकसभा में अपनी सीटें खो देंगे. इसकी सबसे बड़ी वजह है, उनके जुर्म की गंभीरता।
दोनों पर क्या हैं आरोप…
राशिद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जेल में हैं. साल 2019 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टैरर फंडिंग के आरोप में राशिद को गिरफ्तार कर लिया. देश के इतिहास में वो पहले लीडर थे, जिनपर आतंकी गतिविधियों का आरोप लगा. इसी तरह से खालिस्तान सपोर्टर अमृतपाल सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत जेल में बंद हैं. दोनों ही देश की सुरक्षा को तोड़ने जैसे अपराध हैं, जो साबित हुए तो मुश्किल हो सकती है।
क्या ले सकेंगे शपथ…
जेल में बंद निर्वाचित प्रतिनिधियों को शपथ लेने के लिए अक्सर अस्थाई रूप से जमानत या पैरोल पर रिहाई मिलती रही है. ऐसे कई उदाहरण हैं. जैसे साल 2020 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बसपा नेता अतुल राय को संसद सदस्य की शपथ लेने के लिए पैरोल दी थी. साल 2022 में यूपी में विधान सभा के शपथ ग्रहण के लिए सपा विधायक नाहिद हसन को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
तो क्या ये लीडर निभा सकते हैं जेल से ड्यूटी ..
क्या सांसद और विधायक ऐसा कर सकते हैं, ये सवाल थोड़ा पेचीदा है. वैसे कई तरीके हैं, जिनकी मदद से ऑनलाइन बैठकें हो सकती हैं और फैसले लिए जा सकते हैं. जेल में बैठे विधायक या सांसद अपनी पार्टी के सीनियर सदस्यों, लीगल टीम और परिवार के लोगों के जरिए जमीनी समस्याएं सुन-समझ सकते हैं. लेकिन- पार्लियामेंट के सेशन में वे हिस्सा नहीं ले सकते. इसके अलावा ये दिक्कत भी होगी कि वे जनता से सीधा संवाद नहीं कर सकते।
अलग-अलग जेलों के मैनुअल होते हैं जो तय करते हैं कि एक कैदी ज्यादा से ज्यादा कितने लोगों से मुलाकात कर सकता है. इसका समय भी तय रहता है. लीडर की जैसी जरूरतें होती हैं, उसमें भी ये एक रोड़ा है. एक मुश्किल ये होगी कि कई मुद्दे संवेदनशील होते हैं, जेल में रहते हुए जिनका पालन नहीं किया जा सकता. कुल मिलाकर काफी सारी प्रैक्टिकल दिक्कतें हैं जो रास्ते में आ सकती हैं।
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