उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए गठित समिति को 2 लाख 31 हजार से ज्यादा सुझाव मिले है. माना जा रहा है कि ड्रॉफ्ट कमेटी इन्हीं सुझावों पर मुहर लगा सकती है. लेकिन उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चा इससे कहीं आगे की है. केंद्र सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता को लेकर मांगे गए सुझावों के बाद माना जाने लगा है, क्या उत्तराखंड में बन रहा समान नागरिक संहिता का ड्रॉफ्ट केंद्र सरकार के यूनिफॉर्म सिविल कोड का टेंपलेट या आधार बनने वाला है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी पर देशभर में चर्चा शुरू हो गई है. दरअसल, लॉ कमीशन ने आम लोगों और धार्मिक संगठनों से इसपर राय मांगी है. इस बीच यूसीसी का ड्राफ्ट उत्तराखंड की बीजेपी सरकार 30 जून को विधानसभा में पेश करने वाली है. इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि उत्तराखंड में लागू होने वाले यूसीसी में क्या प्रावधान किए गए हैं।
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए मार्च 2022 में एक्सपर्ट कमेटी बनाई थी और आम लोगों की प्रतिक्रिया और सुझाव मांगे थे. इसके बाद कमेटी को करीब 2 लाख 31 हजार सुझाव भेजे गए. इन्हीं सुझावों से यूसीसी का मसौदा तैयार किया गया है।
कुछ दिन पूर्व ही समिति की अध्यक्ष व सदस्यों ने नई दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों के साथ भी समान नागरिक संहिता के लिए संवाद किया था। जन संवाद में तकरीबन उसी तरह के सुझाव समिति को प्राप्त हुए जो बाकी प्रदेश से अलग-अलग क्षेत्रों में हुए जन संवादों में और ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से इकट्ठा किए गए थे। इन सुझावों की संख्या करीब 2.31 लाख से अधिक है, जिनका समिति के सदस्यों ने गहन अध्ययन कर महत्वपूर्ण, जरूरी और प्रासंगिक सुझावों को छांटा है।
ड्राफ्ट में क्या है?
यह सुझाव दिया गया है कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाए ताकि उन्हें ग्रेजुएट होने का मौका मिले. शादी का रजिस्ट्रेशन न होने पर सरकारी सुविधाएं नहीं देने और पति-पत्नी दोनों के पास तलाक के सामान अधिकार देने के अलावा सुझावों में बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक की बात भी कही गई है।
साथ ही उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा देने, पत्नी की मौत हो जाती है और उसके माता पिता का कोई सहारा न हो तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी पति की होगी. इसके अलावा मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का अधिकार भी मिलेगा. गोद लेने की प्रक्रिया आसान की जाएगी. हलाला और इद्दत पर रोक लगेगी. लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन जरूरी होगा. ये एक सेल्फ डिक्लेरेशन की तरह होगा जिसका एक वैधानिक फॉर्मैट होगा।
बच्चे के अनाथ होने की सूरत में गार्जियनशिप की प्रक्रिया को आसान करने और पति-पत्नी के झगड़े की सूरत में बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है।
पूरे देश में यूनिफार्म सिविल कोड का टेम्पलेट बनेगा उत्तराखण्ड का UCC (यूनिफॉर्म सिविल कोड)…
1—- पॉलीगैमी या बहुविवाह पर रोक लगेगी।
2—-लड़कियों की शादी की आयु बढ़ाई जाएगी ताकि वे विवाह से पहले ग्रेजुएट हो सकें।
3—- लिव इन रिलेशनशिप का डिक्लेरेशन जरूरी होगा। माता पिता को सूचना जाएगी।
4—- उत्तराधिकार में लड़कियों को लड़कों के बराबर का हिस्सा मिलेगा।
5 —- एडॉप्शन सभी के लिए allow होगा। मुस्लिम महिलाओं को भी मिलेगा गोद लेने का अधिकार। गोद लेने की प्रक्रिया आसान की जाएगी।
6–हलाला और इद्दत पर रोक होगी।
7– शादी का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन होगा। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नही मिलेगा।
8–– पति-पत्नी दोनो को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्री के लिए भी लागू होगा।
9–नौकरीशुदा बेटे की मौत पर पत्री को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी। अगर पत्नी पुर्नविवाह करती है तो पति की मौत पर मिलने वाले कंपेंशेसन में माता पिता का भी हिस्सा होगा।
10– मेंटेनेंस– अगर पत्नी की मौत हो जाती है और उसके माता पिता का कोई सहारा न हो, तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी पति की।
11- गार्जियनशिप– बच्चे के अनाथ होने की सूरत में गार्जियनशिप की प्रक्रिया को आसान किया जाएगा।
12- पति-पत्नी के झगड़े की सूरत में बच्चों की कस्टडी उनके ग्रैंड पैरेंट्स को दी जा सकती है।
13–जनसंख्या नियंत्रण की बात। Uniformity in the number of children, one can have.
कमेटी की चीफ ने क्या कहा?
उत्तराखंड के यूसीसी पर दिल्ली में रहने वाले उत्तराखंड के लोगों की राय जानने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए धामी सरकार की तरफ से बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी को लीड कर रही सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई भी शामिल हुई थीं. उन्होने इस दौरान कहा कि यूसीसी सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करेगा. इसके साथ ही ये आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक भेदभाव से लड़ने में भी मददगार होगा।
नई राजनीति के केंद्र में उत्तराखंड
लॉ कमीशन के बुधवार (14 जून) को यूसीसी पर लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों के विचार और सुझाव मांगने पर कांग्रेस, टीएमसी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार पर निशाना साधा और इसे आगामी लोकसभा चुनाव में मुद्दों से भटकाने का प्रयास बताया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कही यह बात
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि यूसीसी की देश को जरूरत नहीं है. बोर्ड के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा, ”2016 में इसी लॉ कमीशन ने कहा था कि 10 साल तक यूसीसी पर बात नहीं होनी चाहिए. ऐसे में लॉ कमीशन ने अपना नजरिया क्यों बदल लिया? बीजेपी आने वाले लोकसभा चुनाव में इसे एक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है. यूसीसी की बात है तो देश को इसकी जरूरत नहीं है।
कांग्रेस ने क्या कहा …
कांग्रेस ने गुरुवार (15 जून) को आरोप लगाया कि विधि आयोग का समान नागरिक संहिता को लेकर उठाया गया नया कदम यह दर्शाता है कि मोदी सरकार अपनी विफलताओं से ध्यान भटकाने और ध्रुवीकरण के अपने एजेंडे को वैधानिक रूप से जायज ठहराना चाहती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि विधि आयोग को अपनी विरासत का ध्यान रखना चाहिए और यह भी याद रखना चाहिए कि देश के हित भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से अलग होते हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जेडीयू यूसीसी के मुद्दे पर सहमति कायम करने के प्रयास की आवश्यकता पर बल देते हुए गुरुवार को कहा कि सभी पक्षों को विश्वास में लिया जाना चाहिए।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने यूसीसी को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वो हताशा के कारण विभाजनकारी राजनीति को हवा दे रही है. पार्टी प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन ने ट्वीट किया कि सरकार महंगाई पर काबू पाने और रोजगार के नए मौके सृजित करने के अपने वादे को पूरा करने में विफल रही है।
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