यह 1962 का नही..2020 का भारत है..वलोंग डे में पूर्व सैनिको ने सम्मान के साथ शहीदो को किया याद..दी श्रद्धांजलि

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हल्द्वानी नैनीताल 16.November 2020 GKM NEWS सर्वप्रथम सभी उपस्थित भूतपूर्व सैनिकों ने 2 मिनट मौन रखकर शहीदों को नमन किया तदउपरांत कल्याण समिति के अध्यक्ष सूबेदार मेजर राजेंद्र सिंह ने 1962 में 6 कुमाऊं के द्वारा चाइना के साथ युद्ध में लड़े जाने व शहीद होने के बारे में बताया। उस समय के युद्ध में भाग लिए हुए औनरी कैप्टन ताकुली चीफ गेस्ट ने अपने आंखों देखा हाल बताया और पलटन की बहादुरी की याद दिलायी। गौरव सेनानी कल्याण समिति 6 कुमाऊं रेजीमेंट के भूतपूर्व सैनिकों ने कोरोना काल में पूर्ण सुरक्षा इंतजाम के साथ सन 1962 में शहीद अपनी यूनिट के वीर जवानों को विगत वर्ष की भांति वलोंग डे मना कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है। इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी अक्साई चिन क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है और अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है।
सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर एक हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की आवश्यकता होती है।

पहाड़ी युद्ध में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक रचना दुसरे पक्ष को बचाव में मदद करती है। चीन इलाके का लाभ उठाने में सक्षम था और चीनी सेना का उच्चतम चोटी क्षेत्रों पर कब्जा था। दोनों पक्षों को ऊंचाई और ठंड की स्थिति से सैन्य और अन्य लोजिस्टिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और दोनों के कई सैनिक जमा देने वाली ठण्ड से मर गए।


आगे का युद्ध नवम्बर माह के प्रथम ,द्घितीय सप्ताह मध्य बढ़ता गया ।भारतीय सेना की 6 कुमाऊं पल्टन ने अकेले विषम हालातों में चीनियों का डठकर सामना किया ,अब तक हाथी गढ़ बिग्रेड की रिइंफोर्समेंट सिख रेजि० ,डोगरा, गोरखा पहुंच गए आसम राइफल की छोटी टुकड़ी पहले से वालोंग क्षेत्र में तैनात थी ,14 नवम्बर लोहित नदी तट त्रिकोणी (ट्राईजंक्शन) के मैदान में 6 कुमाऊ ने चीनियों के हर आक्रमण को विफल करते रहे चीन का ब्रिगेड, डिविजन तक का हमला (रिइंफोर्स )कामयाब नहीं हो सका ,सामरिक महत्व वालोंग को चीनि हाथों जाने से सुरक्षित कर लिया ,सहायक यूनिटो ने भी वालोंग के पर्वत चोटियों पर अच्छी तरह मोचोबंदी कर ली,चीन वालोंग से पीछे हट गया और 21 नवम्बर 1962 चीन ने एक तरफा युद्ध विराम घोषणा कर दी।
युद्ध में काफी बड़ी संख्या में सैनिक शहीद,घायल ,युद्धबंदी हुए।


युद्ध के शुरू होने तक भारत को पूरा भरोसा था कि युद्ध शुरू नहीं होगा, इस वजह से भारत की ओर से तैयारी नहीं की गई। यही सोचकर युद्ध क्षेत्र में भारत ने सैनिकों की सिर्फ दो टुकड़ियों को तैनात किया जबकि चीन की वहां तीन रेजिमेंट्स तैनात थीं। चीनी सैनिकों ने भारत के टेलिफोन लाइन को भी काट दिए थे। इससे भारतीय सैनिकों के लिए अपने मुख्यालय से संपर्क करना मुश्किल हो गया था। भारतीय सेना इस हमले के लिए तैयार नहीं थी नतीजा ये हुआ कि चीन के 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए भारत की ओर से मैदान में थे 10-20 हजार सैनिक। ये युद्ध पूरा एक महीना चला जब तक कि 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा


यह 1962 का नहीं बल्कि 2020 का हिंदुस्तान है तो इस बात में दम है..भारत अब पहले वाला भारत नही है..यह 2020 का भारत है..

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