सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि के खिलाफ केस क्यों हुआ बंद ? जानिए पूरा मामला..

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पतंजलि और बाबा रामदेव की मुश्किलें भ्रामक विज्ञापनों को लेकर काफी बढ़ गई थीं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप था कि कंपनी झूठे दावे करती है और एलोपैथिक इलाज को बदनाम करती है। कोर्ट ने इस मामले में कई बार कड़ी टिप्पणियाँ कीं, नोटिस जारी किए और व्यक्तिगत माफी भी मंगवाई। लेकिन अब,सुप्रीम कोर्ट ने यह केस बंद कर दिया है।

क्यों बंद हुआ केस?

1.आयुष मंत्रालय ने नियम 170 हटा दिया
नियम 170 के तहत आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन से पहले मंजूरी लेनी होती थी। लेकिन जुलाई 2024 में सरकार ने यह नियम हटा दिया। इसके बाद अदालत ने माना कि अब वह राहत की मांग ही बेमानी हो गई है।

2.कोर्ट का कहना: विज्ञापन देना स्वाभाविक प्रक्रिया है
सुप्रीम कोर्ट की बेंच (जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन) ने कहा कि जब सरकार किसी दवा के निर्माण की अनुमति देती है, तो उसका विज्ञापन करना एक सामान्य कारोबारी प्रक्रिया है। ऐसे में, कोर्ट पुराने आदेशों को वापस लेती है और केस को बंद किया जाता है।

3.अदालत ने कहा – हमारी शक्ति की एक सीमा है
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह केंद्र सरकार द्वारा हटाए गए नियम को फिर से लागू नहीं कर सकती।

केस की अहम टाइमलाइन

2022: IMA ने पतंजलि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।

21 नवंबर 2023: पतंजलि ने वादा किया कि भविष्य में भ्रामक विज्ञापन नहीं चलाएगा।

9–10 अप्रैल 2024: रामदेव और बालकृष्ण ने बिना शर्त माफी मांगी। कोर्ट ने इसे अपर्याप्त कहा।

16 अप्रैल 2024: रामदेव कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश हुए।

7 मई 2024: कोर्ट ने भ्रामक दवाएं बाजार से हटाने और सेलिब्रिटी/इन्फ्लुएंसर की जिम्मेदारी तय करने का आदेश दिया।

1 जुलाई 2024: आयुष मंत्रालय ने नियम 170 हटाया।

13 अगस्त 2024: सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद की।

अगस्त 2025: कोर्ट ने IMA की याचिका को बंद कर दिया। आगे क्या?

इस फैसले के बाद अब पतंजलि सहित सभी आयुर्वेदिक कंपनियों को विज्ञापन देने में पहले जैसी सख्त पाबंदियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। हालांकि, झूठे दावों पर रोक लगाने के लिए पहले से मौजूद कानूनों का पालन अनिवार्य रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए केस बंद किया कि याचिका में मांगी गई राहत अब प्रासंगिक नहीं रह गई है। सरकार ने संबंधित नियम पहले ही हटा दिया है, और कोर्ट के पास इसे फिर से लागू करने की शक्ति नहीं है।

अब आयुर्वेदिक दवाओं के विज्ञापन पर पहले जैसी सख्ती नहीं रहेगी, लेकिन झूठे और भ्रामक दावों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का रास्ता अब भी खुला है।

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