कारगिल विजय दिवस : बलिदानियों को श्रद्धांजलि,वीर सपूतों को CM ने किया नमन

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आज पूरा देश 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस के रूप में मना रहा है. इस दौरान करगिल के शहीदों को याद किया जा रहा है. 24 साल पहले आज ही के दिन भारतीय सेना ने अपना शौर्य दिखाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को भारत की जमीन से खदेड़ कर विजय की घोषणा की थी. इस अवसर पर प्रदेश में कई कार्यक्रम किए जा रहे हैं तो वहीं वीर जवानों के बलिदान को भी नमन किया जा रहा है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस अवसर पर कहा कि ये पहला ऐसा युद्ध था, जिसे सेना ने युद्ध के मैदान के साथ-साथ टेबल पर भी जीता था।

कारगिल विजय दिवस पर उत्‍तराखंड के बलिदानियों को नमन किया गया। राज्यपाल ले जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने चीड़बाग स्थित शौर्य स्थल पर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी। वहीं मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर सिंह धामी ने गांधी पार्क स्थित शहीद स्मारक पर बलिदानियों को नमन किया।

चीड़बाग स्थित शौर्य स्थल पर राज्यपाल ले जनरल गुरमीत सिंह (सेनि) ने कहा कि भारत की सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम से हमेशा देश का गौरव बढ़ाया है, जिस पर हम सभी को गर्व है। इन वीर जवानों के त्याग एवं बलिदान के कारण ही राष्ट्र की सीमाएं सुरक्षित हैं।

करगिल दिवस पर युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर जवानों को याद करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहा कि, “कारगिल विजय दिवस के अवसर पर मैं भारत माता के उन वीर जवानों को नमन करता हूं जिन्होंने भारत के लिए अपना बलिदान दिया. पहली बार भारत में इतिहास रचने का काम किया. उन्होंने कहा कि जब ये युद्ध हुआ था उस वक्त स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे, पहली बार देश में ऐसा युद्ध हुआ जिसे सेना ने युद्ध के मैदान पर भी जीता और उसके साथ-साथ आमने सामने बैठकर भी जीत हासिल की।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गांधी पार्क स्थित शहीद स्मारक पर कारगिल युद्ध के बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून में हरबर्टपुर और पिथौरागढ़ में डीडीहाट में सैनिक कल्याण विभाग के उप कार्यालय खोले जाएंगे। शहीद स्मारकों का रखरखाव जिला प्रशासन करेगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पराक्रम की नई परिभाषा लिखी। अपने अदम्य साहस के दम पर वह कर दिखाया जो कोई सेना नहीं कर पाई। यह दिखाया कि कोई दुश्मन हमारी तरफ आंख उठाकर नहीं देख सकता।

यह आयोजन इसलिए भी जरूरी है कि भावी पीढ़ी इस शौर्य गाथा से परिचित हों। इसे अपने मानस पटल, अपनी स्मृति में रखें। आने वाली कई पीढ़ियां इससे प्रेरणा लेती रहेंगी। उत्तराखंड के वीर हमेशा बलिदान देने में आगे रहे हैं। उनके साहस के असंख्य किस्से सैन्य इतिहास में दर्ज हैं। उनकी स्मृति को हम कभी मिटने नहीं देंगे।

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