भारत के युवा प्रोफेशनल्स रोज़ाना स्ट्रैटेजी गेम्स की मदद से तनाव कम कर रहे हैं

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आधुनिक भारत में अब शाम के समय युवा केवल टीवी स्क्रीन के सामने आराम करने तक सीमित नहीं रहे । बल्कि इस समय ऑनलाइन गेमिंग तेज़ी से इस तनाव को कम करने वाले तरीकों की जगह ले रही है। यह बदलाव खास तौर पर रात 8 बजे से 11 बजे के बीच होता दिखाई देता है — जब कि काम से लौटने के बाद का मुख्य समय होता है और भारत का युवा सोने से पहले थोड़ा वक्त खुद के लिए निकालता है।

इस रुझान पर जब हम गहराई से विचार करते हैं तो कुछ दिलचस्प बातें सामने आती हैं, जैसे इस नए मनोरंजन विकल्प का उपयोग करने वाले वर्ग में ज़्यादातर 20 और 30 की उम्र के लोग हैं। और ये युवा बुद्धिमत्ता और कौशल पर आधारित गेम्स की तलाश में रहते हैं, जैसे कि शतरंज, रम्मी, और अन्य कार्ड-आधारित खेल।

हाल ही में आई Lumikai की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 591 मिलियन सक्रिय गेमर्स में से 43% लोग वे हैं हैं जो पहली बार कमाई करने वाले हैं और जिनकी उम्र 18 से 30 वर्ष के बीच है।बड़ी बात ये है कि गेमिंग में बिताया गया साप्ताहिक समय अब 30% तक बढ़ कर औसतन 13 घंटे हो गया है।

और मज़ेदार बात ये है कि इस बढ़े हुए समय का बड़ा हिस्सा कहीं और से निकाला गया है — खास तौर पर सोशल मीडिया पर बिना रुके स्क्रीन स्क्रॉलिंग के घंटों में से।

एक्टिव गेमिंग सेशन ने पैसिव स्क्रॉलिंग टाइम को पीछे छोड़ा


आज के पेशेवर युवा ये मानने लगे हैं कि रणनीति-आधारित एक छोटा-सा गेम खेलने के बाद वे खुद को ज़्यादा सावधान और मानसिक रूप से सक्रिय महसूस करते हैं, इसके बजाय उनके लिये ऑनलाइन आधा घंटा बिना उद्देश्य स्क्रॉलिंग अब काम की चीज़ नहीं रही
ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि रम्मी जैसे गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म हर खिलाड़ी से कुछ अलग तरह का कौशल माँगते हैं — जैसे कि याददाश्त, धैर्य और दबाव में तेज़ निर्णय लेने की क्षमता।


यही वह पॉइंट है जहाँ आज, शाम बिताने की आदतें पुरानी आदतों से अलग हो रही हैं।
और बेहतर बात ये है कि इसके नतीजे भी कहीं ज़्यादा संतोषजनक होते हैं। जैसे किसी पहेली को हल करना या फिर रम्मी ऐप में एक बाज़ी जीतना एक वास्तविक उपलब्धि का अहसास कराता है। विश्लेषकों के अनुसार, इस प्रक्रिया में दिमाग़ में ‘ऐंडॉर्फिन्स’ नियंत्रित और सुरक्षित मात्रा में रिलीज़ होते हैं
जबकि इसके ठीक विपरीत, लगातार वीडियो या रील्स स्क्रॉल करना दिमाग़ में एक बेजान शोर का कारण बनते हैं। रणनीति-आधारित गेम्स आपका पूरा सक्रिय ध्यान माँगते हैं और बदले में आपको एक संतोषजनक परिणाम प्रदान करते हैं।
खिलाड़ी गेम खेलने के बाद खुद को सतर्क और मानसिक रूप से तरोताज़ा महसूस करते हैं — जो कि उस दिमाग़ी शिथिलता से बिलकुल अलग है, जो अक्सर लंबे समय तक स्ट्रीमिंग देखने के बाद महसूस होती है।
इसके बाद बात आती है नियंत्रण और अनुशासन की। एक तरफ सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म तो बनाए जाते हैं कि वे यूज़र्स को अंतहीन लूप में खींच लें और उनका ज़्यादा से ज़्यादा समय खर्च कर सकें । जबकि रणनीति-आधारित गेम्स तो बनाये ही सीमित समय के लिये जाते है।
उदाहरण के लिए, रम्मी का एक राउंड केवल 5 से 10 मिनट का होता है। खिलाड़ी चाहें तो अगला गेम खेल सकते हैं, इसके कारण एक अच्छी बाज़ी के बाद संतोष का अनुभव होना ज़्यादा आसान होता है।
यह समय की सीमा का एहसास — जब वास्तविक दुनिया के सामाजिक खेलों के साथ जुड़ता है — तो रम्मी ऐप्स और इसके जैसे दूसरे रणनीति-आधारित गेम्स खेलों को एक बेचैन करने वाले व्यसन के बजाय एक सोचा-समझा ब्रेक बना देता है।।

रणनीति-आधारित गेम्स के बौद्धिक और सामाजिक लाभ
रम्मी, लूडो और अन्य रणनीति-आधारित गेम न सिर्फ़ जाने पहचाने खेल हैं, बल्कि इनमें एक प्रकार की भावनात्मक यादें भी जुड़ी होती है।और इससे भी आगे बढ़कर, ये गेम एक बेहतर बौद्धिक विकास के अभ्यास का लाभ भी देते हैं।


विशेषज्ञों का मानना है कि रम्मी जैसे गेम्स कार्य क्षमता और स्मृति बढ़ाने, निर्णय लेने की क्षमता और परिस्थिति के अनुसार ढलने की योग्यता को बेहतर बनाते हैं। इन खेलों में कार्डस का सेट बनाना और सैट बनने की संभावनाओं की गणना करना शामिल होता है जो मस्तिष्क के लिए एक सक्रिय प्रशिक्षण जैसा होता है।

ये क्षमताएं आज के पेशेवरों के लिए बेहद अहम हैं, खासकर दिनभर के प्रतिक्रियात्मक और लगातार किये जाने दोहराव वाले कामों के बाद।

पहेली आधारित खेल भी इसी तरह की सोच पर बने होते हैं। जैसे सुडोकू और क्रॉसवर्ड्स जैसे खेलों से एकाग्रता बढ़ती है और बौद्धिक क्षमताओं की क्षति को टाला जा सकता है। यहां तक कि, इन्हें एक्टिव मेडिटेशन यानी सक्रिय ध्यान का रूप भी कहा गया है, क्योंकि ये एक साथ कार्य की एकाग्रता और आराम के बीच संतुलन बनाते हैं।

इसी कारण देखा गया है कि कई पेशेवर लोग सफर के दौरान अपने साथ पज़ल बुक्स रखते हैं या मोबाइल ऐप्स पर ऐसे गेम खेलते हैं। उनका उद्देश्य होता है हर सैशन को एक छोटी चुनौती के रूप में लेना और इन पहेलियों से ऐसा अनुभव प्राप्त होता है जो दिमाग़ को पहले से ज़्यादा साफ़ और तरोताज़ा कर देता है।

इसका एक और पहलू भी है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि रणनीति-आधारित गेमिंग जो अब रम्मी ऐप्स और अन्य ऑनलाइन गेम्स के ज़रिए आसानी से उपलब्ध है तनाव को कम करने के साथ-साथ इंसानी जुड़ाव भी बढ़ाती है, खासकर मल्टीप्लेयर फॉर्मेंट में। ऐप में मौजूद चैट फीचर्स और टूर्नामेंट्स उस एकाकीपन का मुकाबला करते हैं जो बिना सोचे-समझे स्क्रॉल करने से होता है। इसके अलावा, क्योंकि इन गेम्स को कुछ ही मिनटों में रोका या ख़त्म किया जा सकता है, खिलाड़ी अपने फुर्सत के समय पर खुद का नियंत्रण महसूस करते हैं।

नतीजा? अब मनोरंजन थकाने वाला नहीं, बल्कि मनोरंजन के साथ खुद को सशक्त महसूस करने वाला अनुभव बन गया है।

कार्य और कार्यस्थल में सुखद मानसिक अनुभव को बढ़ावा देने वाला गेमिंग

रणनीति-आधारित खेलों की ओर बढ़ता रुझान अब ऑफ़िस संस्कृति में भी दिखाई देने लगा है। mid-2024 में हैदराबाद स्थित को-वर्किंग चेन iSprout ने अपने 14 सेंटरों में कुल 133 प्रतिभागियों के साथ एक शतरंज टूर्नामेंट आयोजित किया। इस आयोजन का उद्देश्य था-गेमिंग के ज़रिए मानसिक सक्रियता, सामुदायिक जुड़ाव और तनाव-मुक्ति को बढ़ावा देना।

शतरंज, जिसे आमतौर पर एक अंतरराष्ट्रीय दिमागी खेल माना जाता है, उसे इस मौके पर ‘वेलनेस टूल ‘और ‘नेटवर्किंग माध्यम’ दोनों रूपों में प्रस्तुत किया गया। यह चलन अब भारत के प्रमुख ‘टेक हब्स ‘में तेज़ी से फैल रहा है। ब्रेक रूम्स में गेम कॉर्नर, पज़ल कैफ़े और अनौपचारिक कार्ड टेबल्स की लोकप्रियता बढ़ रही है। अब एक छोटी-सी रम्मी की बाज़ी या सुडोकू का राउंड लंच टाइम या ब्रेक टाइम में स्क्रीन स्क्रॉलिंग की जगह लेने लगा है।

ऐसा नज़ारा अब बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में आम होता जा रहा है। सारांश ये है कि रणनीति-आधारित गेम्स न केवल बेहतर, बल्कि ज़्यादा सहयोगी और सार्थक ब्रेक का ज़रिया बनते जा रहे हैं और लोग अब इसे गंभीरता से अपना भी रहे हैं।

हमारे लिए इस उभरती जीवनशैली बदलाव का क्या मतलब है

फुर्सत के समय में रणनीति-आधारित गेम्स को प्राथमिकता देना युवा भारतीयों के बीच एक व्यापक जीवनशैली बदलाव को दर्शाता है। वो तकनीकी पेशेवर, जो पहले अपने ब्रेक टाइम को YouTube और Netflix से जोड़ते थे, अब उसे एक नए रूप में देख रहे हैं जिसे वे “सार्थक विश्राम” या productive relaxation कह सकते हैं।

इसका मतलब यह नहीं है कि स्क्रीन टाइम पूरी तरह खत्म हो गया है-बल्कि इस बदलाव से अब स्क्रीन पर दिखाई देने वाला कंटेंट भी बदल रहा है। जैसे-जैसे पेशेवर युवा डिजिटल थकान के प्रति ज़्यादा जागरूक हो रहे हैं, वैसे ही वे अब अपने खाली समय में सार्थक जुड़ाव की तलाश कर रहे हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो अब नया मंत्र यह हो सकता है: “शो के दो एपिसोड या फिर ऐप पर रम्मी का एक गेम।”

यह साधारण-सा बदलाव जहाँ लोग ऑटोप्ले के आगे समर्पण करने के स्थान पर मनचाही रणनीति को चुन रहे हैं भारतीय युवाओं की शामों को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है।

इस तरह के टैक्टिकल गेम्स या रणनीतिक खेलने की आदतें एक मानसिक उत्तेजना, और कार्यस्थल में घंटों के डिजिटल शोर के बाद ब्रेक टाइम में खुद पर खुद के नियंत्रण का अनुभव वापस देती हैं। जो कभी सिर्फ़ एक केजुअल गेमिंग अनुभव था, वह अब तेज़ी से एक दैनिक आदत बनता जा रहा है जिसमें शामिल है ऐप डिज़ाइन, दोस्ताना प्रतियोगिता और स्वेच्छा से जुड़ने की स्वतंत्रता और जब यह नया, संतुलित फुर्सत का समय दिनचर्या में शामिल हो जाता है, तो यह दर्शाता है कि अब लोग ऐसा मनोरंजन चुन रहे हैं जो दिमाग़ को “ऑन” तो रखता है, लेकिन अपनी शर्तों पर।

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