नैनीताल – जिला पंचायत चुनाव में ‘शक्ति प्रदर्शन’ का फार्मूला पिट गया, भाजपा के गढ़ में सेंध..

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नैनीताल –
उत्तराखंड की राजनीति में नैनीताल जिला पंचायत चुनाव ने एक नई पटकथा लिख दी है। जिस भाजपा ने पूरे संसाधनों और सियासी ताकत के साथ मैदान में कदम रखा था, वही सत्तारूढ़ दल जनता की अदालत में बुरी तरह से फेल हो गया। 27 में से 23 सीटों पर भाजपा ने समर्थन तो दिया, लेकिन केवल 5 ही जीत सकी। नतीजा यह रहा कि बागी और निर्दलीय प्रत्याशियों ने भाजपा की रणनीति को चिथड़े-चिथड़े कर दिया।

भाजपा का गढ़ यानी किला कालाढूंगी सीट के राजा दशरथ कहे जाने वाले विधायक बंशीधर भगत अपना दबदबा कायम नहीं रख पाए। खुद और संगठन की पूरी ताकत झोंकने के बाद भी भाजपा समर्थित प्रत्याशी बेला तोलिया हार गईं। यानी ज़मीन खिसक रही है परंपरागत सीट पर सेंध लग गयी। हिंदी में कहावत यहां सटीक बैठती लगती है कि अब ज़माने लद गये। ये आने वाला समय ही बताएगा लेकिन संकेत यही है।

यह सिर्फ एक चुनाव नहीं था यह 2027 के विधानसभा चुनाव का ट्रेलर था, और इस ट्रेलर में भाजपा पस्त हो गयी। चाहे सांसद हों, विधायक या फिर जिलाध्यक्ष सभी की मेहनत धराशायी हो गई। जिस ‘मिशन जीत’ के लिए पूरी पार्टी मशीनरी झोंकी गई, वह खुद जनता की ‘मिशन रिजेक्ट’ में तब्दील हो गई।

छवि बोरा की धमाकेदार जीत : भाजपा की ‘कद्दावर’ नेता को दी पटकनी

इस चुनाव की सबसे हाई-प्रोफाइल सीट रही पनियाली रामड़ी-आनसिंह जहां से भाजपा ने निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बेला तोलिया को चुनाव मैदान में उतारा। उनके समर्थन में पार्टी ने जमीन-आसमान एक कर दिया। लेकिन सारी ताकत भी उस ‘छवि’ को धुंधला नहीं कर पाई जो छवि बोरा कांडपाल ने बनाई।

पहली बार चुनाव लड़ रहीं छवि बोरा ने न केवल बेलातोलिया को हराया, बल्कि यह भी जता दिया कि अगर इरादे मजबूत हों तो राजनीतिक अनुभव की दीवारें भी गिराई जा सकती हैं। उनके पति प्रमोद बोरा भाजपा के पूर्व जिला मंत्री हैं, लेकिन उन्होंने पत्नी के समर्थन में पार्टी लाइन तोड़ दी। पार्टी ने जवाबी कार्रवाई करते हुए उन्हें पद से हटा दिया, लेकिन जनता ने प्रमोद बोरा की ‘बगावत’ को सही ठहराया।

छवि बोरा, जो हल्द्वानी महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर थीं, ने समाज सेवा के लिए अपनी नौकरी छोड़ी। चुनावी मैदान में कदम रखते ही उन्होंने दिखा दिया कि शिक्षा, सेवाभाव और संकल्प शक्ति का मेल राजनीति में किस कदर असरदार हो सकता है।

“मैंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया है, सत्ता का नहीं,” छवि बोरा की जीत के बाद यह बयान जनभावना को सीधे छू गया।

हल्द्वानी की चोरगलिया सीट: भाजपा को दूसरा झटका

चोरगलियां आमखेड़ा सीट पर भाजपा की अनीता बेलवाल को कांग्रेस समर्थित लीला बिष्ट ने करारी शिकस्त दी। यहां भी भाजपा ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन नतीजा वही जनता ने बदलाव को वोट दिया। लीला बिष्ट की जीत कांग्रेस के लिए मनोबल बढ़ाने वाली रही।

नैनीताल विधायक सरिता आर्या के बेटे की हार: ‘विरासत’ की राजनीति को झटका

नैनीताल की दिग्गज नेता और विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्या भी इस चुनावी भंवर में टिक नहीं पाए। भवाली गांव जिला पंचायत सीट से निर्दलीय यशपाल ने उन्हें हराया। यह हार सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस राजनीतिक विरासत की भी थी जिसे बार-बार जनता पर थोपने की कोशिश की जाती है।

भाजपा के लिए बड़ा झटका, जनवरी निकाय चुनाव के बाद मिली एक और शिकस्त

इस साल जनवरी में हुए निकाय चुनावों में भी भाजपा को निराशा हाथ लगी थी। उस समय भी केवल हल्द्वानी नगर निगम की सीट ही पार्टी की झोली में आई थी। अब पंचायत चुनाव में दूसरी बार जनता ने भाजपा के चेहरे पर अविश्वास की मुहर लगाई है। साफ है जनता अब सिर्फ झंडा नहीं देख रही, चेहरा और चरित्र भी तौल रही है।

इस परिणाम ने कई बातें साफ कर दी हैं

भाजपा की चुनावी रणनीति और स्थानीय नेतृत्व में भारी disconnect है।
बगावत और भीतरघात से पार्टी अभी तक न उबर पाई है।
जनता अब जाति, परिवार और पार्टी सिंबल से ज़्यादा उम्मीदवार की छवि और नीयत को प्राथमिकता दे रही है।
जिला पंचायत जैसे चुनाव अब केवल ‘स्थानीय निकाय’ नहीं रह गए हैं _ ये राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने वाले सेमीफाइनल हैं।

नैनीताल की जनता ने साफ संदेश दिया है “ताकत नहीं, नीयत चलेगी। प्रचार नहीं, परिश्रम जीतेगा।” भाजपा के लिए यह सिर्फ चुनावी हार नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यदि पार्टी ने अब भी जमीनी हकीकत को नजरअंदाज किया, तो 2027 का फाइनल और भी करारा हो सकता है।

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