उत्तराखंड विधानसभा से सेवा समाप्त किये गए कर्मचारियों के मामले में उच्च न्यायालय ने विधानसभा से इंस्ट्रक्शन मांगे हैं। मामले में कल भी जारी रहेगी सुनवाई। आज लगभग दो घंटे चली सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा कर्मचारियों के अधिवक्ता को विस्तार से सुना।
मामले को सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने विधान सभा से कहा है कि वो कल तक इस संबंध में इंस्ट्रक्शन दें। मामले के अनुसार वर्ष 2001 से 2015 तक की भरतीयों को छोड़कर 2016 से आगे के लोगों को बाहर कर दिया गया है। इसमें विधानसभा ने 29 सितंबर को एक आदेश जारी कर 228 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अब विधानसभा में कुल 170 लोग कार्यरत हैं। मामले में कल दोबारा सुनवाई होनी तय हुई है।
विस्तार
हाई कोर्ट ने विधानसभा सचिवालय के कर्मचारियों के बर्खास्तगी आदेश के विरुद्ध दायर 55 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई की। न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सुनवाई शनिवार को भी जारी रखी है। अपनी बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट व कुलदीप सिंह व 53 अन्य ने चुनौती दी है।
किस आधार पर हटाया, नहीं बताया
न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवीदत्त कामत, वरिष्ठ अधिवक्ता अवतार सिंह रावत व रविन्द्र सिंह ने कोर्ट को बताया कि विधानसभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। मगर बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया, कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया न ही उन्हें सुना गया। जबकि उनके सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैकडोर नियुक्तियां 2002 से 2015 के बीच भी हुई है, जिनको नियमित किया जा चुका है।
6 साल बाद भी नहीं किया गया स्थायी
याचिका में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ रूप से नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई । किन्तु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी स्थायी नहीं किया, अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में भी उनकी नियुक्ति को जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गयी थी, जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश दिया था, जबकि नियमानुसार छह माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।
विधानसभा सचिवालय का पक्ष
विधान सभा सचिवालय का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता विजय भट्ट द्वारा कहा गया कि इनकी नियुक्ति बैकडोर के माध्यम से हुई है और इन्हें काम चलाऊ व्यवस्था के आधार पर रखा गया था, उसी के आधार पर इन्हें हटा दिया गया।
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