ऊत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में आज मानव वन्यजीव शंघर्ष मामले में न्यायालय में नब्बे मिनट की गंभीरता के साथ सुनवाई हुई जिसमें प्रमुख सचिव वन आर.के.सुधांशु व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने प्रमुख सचिव से वन्यजीव कॉरिडोर को सुरक्षित रखने और इनकी एक सूची बनाकर न्यायालय को शपथपत्र के माध्यम से उपलब्ध कराने को कहा है।
पौड़ी गढ़वाल निवासी याचिकाकर्ता अनु पंत ने मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए जनहित याचिका दायर कर न्यायालय से प्रार्थना की थी। इस मामले में आज प्रमुख सचिव वन आर.के.सुधांशु की व्यक्तिगत उपस्थिति रही। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामले में राज्य सरकार और उत्तराखंड वन विभाग को विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं।
प्रमुख सचिव वन ने दाखिल शपथ पत्र में न्यायालय को बताया कि पूरे सूबे मे मानव वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए वर्तमान मे वन विभाग में केवल 8 डॉक्टर तैनात हैं, वह भी केवल जिला देहरादून, नैनीताल और हरिद्वार में हैं। आज व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए प्रमुख सचिव वन आर.के.सुधांशु के शपथपत्र में यह कहा गया कि सरकार की ओर से मानव वन्यजीव शाघर्ष से निपटने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिजय नेगी ने सरकार द्वारा दाखिल शपथपत्र से न्यायालय को अवगत कराया। न्यायालय ने बाघ, गुलदार, हाथी और भालू जैसे जानवरों के लिए अलग अलग एस.ओ.पी.बनाने के निर्देश दिए हैं।
प्रमुख सचिव वन आर.के.सुधांशु ने न्यायालय को बताया कि अवश्यकतानुसार वैटरनरी डॉक्टर को जरूरत की जगह भेजा जाता है।
जिसपर नाराज न्यायालय ने प्रमुख सचिव वन को निर्देशित किया कि वह जिलेवार वन विभाग की एक सोची तैयारी कर वन विभाग की वैबसाइट पर अपलोड करें कि कौन से विशेसज्ञ/पशु चिकित्सक किस जिले में तैनात हैं उन जिलों में इनकी तत्काल उप्लब्धता सुनीश्चित की जाए। न्यायालय ने मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को तय की है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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