उत्तराखंड के नैनीताल की सूखाताल झील में सौन्दर्यकरण के नाम पर कॉन्क्रीट का फर्स डालने के मामले में सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अगले आदेशों तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होनी तय हुई है।
नैनीताल में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी को कुमाऊं विश्वविद्यालय के डॉ.अनिल बिष्ट व अन्य ने पत्र लिखकर सूचित किया कि नैनीताल के रीचार्ज जॉन सूखाताल में झील के साथ अन्य जगहों पर अवैध निर्माण हो रहा है। न्यायालय ने इसका स्वतः संज्ञान ले लिया। बहस के दौरान ये बात सामने आई कि सूखाताल सैकड़ों वर्षों से नैनीझील को पानी दे रहा है। यह एक प्राकृतिक जलकुंड है जो बरसातों में भरकर गर्मियों तक खत्म हो जाता है।
विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद पता चला है कि नैनीझील में 39 प्रतिशत पानी सूखाताल से सीपकर(परक्यूलेट)करके आता है। सूखाताल से नैनीझील को मिलने वाला पानी झील के जलस्तर के साथ स्वच्छ जल भी उपलब्ध कराता है। 50 हेक्टयर भूमि से अधिक क्षेत्रफल वाली सूखाताल झील पर आई स्वतः संज्ञान याचिका में अमेक्स क्यूरी बनाए गए न्यायमित्र डॉ.कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि उनकी तरफ से न्यायालय को बताया है कि हाइड्रोलॉजिकल अध्ययनों के अनुसार, सुखाताल की बेड के ऊपर कोई भी निर्माण कराने से पानी नैनीझील को नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर.सी.खुल्बे की खंडपीठ ने राज्य सरकार को सुखाताल झील क्षेत्र में सभी निर्माण गतिविधियों को रोकने का निर्देश दिया है और मामले को 20 दिसंबर को सुनने की इच्छा जताई है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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