“विस्तार केवल बाहरी नहीं, अंतर से भी होना चाहिए” – सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

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“विस्तार केवल बाहर से ही नहीं, बल्कि अंतर से भी होना चाहिए। हर कार्य में निरंकार प्रभु परमात्मा का एहसास किया जा सकता है, पर पहले इसे पहचानना जरूरी है,” यह शब्द सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 58वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में पिंपरी, पुणे में उपस्थित विशाल श्रद्धालु परिवार को संबोधित करते हुए कहे। इस तीन दिवसीय समागम में देश-विदेश से लाखों भक्तों ने भाग लिया और सतगुरु के दिव्य दर्शन एवं प्रवचनों का लाभ लिया।

सतगुरु माता जी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि भक्ति का कोई निश्चित समय या स्थान नहीं होता; यह जीवन के हर क्षण में हो सकती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे एक फूल अपनी खुशबू हर समय बिना किसी प्रयास के फैलाता है, वैसे ही भक्ति का असली अनुभव बिना दिखावे के आत्मसात किया जाता है। भक्ति केवल क्रिया नहीं, बल्कि परमात्मा की उपस्थिति का अहसास है।

सतगुरु माता जी ने मानवता की सेवा और सामाजिक कर्तव्यों को भी भक्ति का हिस्सा बताया और कहा कि सच्ची भक्ति तभी होती है जब मन, वचन, और कर्म से आत्मा परमात्मा के साथ एकरूप हो जाती है। इससे जीवन में प्रेम और सेवा का भाव उत्पन्न होता है, और समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

उन्होंने समाज में समरसता, पर्यावरण की रक्षा और मानवता की सेवा की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, और श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे जीवन के हर पल में परमात्मा की उपस्थिति महसूस करें और आत्म-सुधार पर ध्यान केंद्रित करें।

समागम के पहले दिन विशेष आकर्षण बाल कवि दरबार था, जिसमें बाल संतो ने “विस्तार असीम की ओर” विषय पर काव्य पाठ किया।

सेवादल रैली:

समागम के दूसरे दिन भव्य सेवादल रैली का आयोजन हुआ। हजारों महिला और पुरुष स्वयंसेवक अपनी खाकी वर्दियों में शामिल हुए, और सतगुरु माता जी और निरंकारी राजपिता रमित जी का स्वागत किया। रैली में मिशन की शिक्षाओं पर आधारित लघुनाटिकाओं का प्रदर्शन किया गया, जिनसे भक्ति में सेवा के महत्व को उजागर किया गया। शारीरिक व्यायाम और मल्लखंब जैसे करतब भी प्रस्तुत किए गए, जो मानसिक और शारीरिक तंदुरुस्ती पर जोर देते थे।

सतगुरु माता जी ने सेवादल के सदस्यों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि सेवा 24 घंटे की होनी चाहिए, और इसे अहंकार और दिखावे से मुक्त होकर पूरी तन्मयता से किया जाना चाहिए।

बाल प्रदर्शनी:

समागम के प्रमुख आकर्षणों में से एक बाल प्रदर्शनी थी, जिसमें महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों से मॉडल प्रस्तुत किए गए। बच्चों ने “विस्तार असीम की ओर” और “चायनीज बाम्बू स्टोरी” जैसे मॉडल्स के माध्यम से जीवन में संयम, विश्वास, और निरंतर प्रयास की आवश्यकता को प्रदर्शित किया। प्रदर्शनी को श्रद्धालुओं और छात्रों ने अत्यधिक सराहा।

इस तीन दिवसीय समागम ने न केवल भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें अपने जीवन में भक्ति, सेवा, और आत्म-सुधार को प्राथमिकता देने का संदेश भी दिया।

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