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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक क़रार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”चुनावी बॉन्ड की जानकारी गुप्त रखना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.”
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”स्टेट बैंक ऑफ इंडिया 12 अप्रैल 2019 से आज तक ख़रीदे गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को मुहैया करवाए.”
ये जानकारी तीन हफ़्ते के भीतर देनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च 2024 तक ये जानकारी वेबसाइट पर छापने के लिए कहा है।
हम सरकार की दलीलों से सहमत नहीं- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने इस योजना से काले धन पर रोक की दलील दी थी. लेकिन इस दलील से लोगों के जानने के अधिकार पर असर नहीं पड़ता. यह योजना RTI का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा, सरकार ने दानदाताओं की गोपनीयता रखना जरूरी बताया. लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं।
चुनावी बॉन्ड के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी 2024) फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक करार देते हुए तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि यह स्कीम RTI का उल्लंघन है. इतना ही नहीं उच्चतम अदालत ने एसबीआई से 6 मार्च तक चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए कहा है।
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं. कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में इस पर सुनवाई की थी और नवंबर में फैसला सुरक्षित रख लिया था. गुरुवार को चुनावी बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, बेंच का फैसला एकमत है. हालांकि, इस मामले में दो फैसले हैं, लेकिन निष्कर्ष एक है।
कोर्ट ने कहा, चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 1(a) के तहत हासिल जानने के मौलिक अधिकार का हनन करती है. हालांकि, हर चंदा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए नहीं होता. राजनीतिक लगाव के चलते भी लोग चंदा देते हैं. इसको सार्वजनिक करना सही नहीं होगा. इसलिए छोटे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना गलत होगा. किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव निजता के अधिकार के तहत आता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
– चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक.
– चुनावी बॉन्ड स्कीम RTI का उल्लंघन है.
- इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (बड़े चंदे को भी गोपनीय रखना) असंवैधानिक है.
- जनप्रतिनिधित्व कानून में 2017 में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है.
- कंपनी एक्ट में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है.
- लेन-देन के उद्देश्य से दिए गए चंदे की जानकारी भी इन संशोधनों के चलते छिपती है.
- SBI सभी पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को दे.
- चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे.
- अभी जो बांड कैश नहीं हुए राजनीतिक दल उसे बैंक को वापस करे.
क्या थी चुनावी बॉन्ड स्कीम?
केंद्र सरकार ने 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत की थी. इसे राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत पेश किया गया था. इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था. चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक की 29 शाखाओं में मिलता था. इसके जरिए कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था किसी पार्टी को चंदा दे सकती थी. ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते थे. खास बात ये है कि बॉन्ड में चंदा देने वाले को अपना नाम नहीं लिखना पड़ता।
हालांकि, इन बॉन्ड को सिर्फ वे ही राजनीतिक दल प्राप्त कर सकते थे, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों।
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