रानीखेत की फिजाएं सूफी तरानों से गूंजी, सैय्यद कालू बाबा के145 उर्स के मौके पर।

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रानीखेत की फिजाएं उस वक्त सूफियाना कलाम में डूब गई जब देश के अलग अलग कोने से आए कव्वालों ने 145 उर्स मुबारक के मौके पर सूफियाना कलाम पेश करा।उर्स मुबारक के मौके पर जहाँ सूबे के हर कोने से ज्यारिन तो आए ही थे, देश के और इलाको से भी आए अकीदत मन्दो ने भी अपनी हाजरी लगाई।दरगाह के खादिम मोहसिन खान ने बताया , यह दरगाह आपसी सौहार्दय की मिसाल है, यहाँ हर मजहब के लोग आते है, उन्हने यह भी बताया कि उत्तरप्रदेश जिले के मशहूर कव्वाल  जोड़ी दानिश मोहसिन की जोड़ी के अलावा राजस्थान , आदि तमाम इलाको से आए कव्वालों ने अपना कलाम पेश किया। खान ने यह भी बताया कि वैसे तो रजब के चांद में उर्स मुबारक की तारीख पड़ती है, लेकिन रानीखेत में होने वाली ठंड और बर्फबारी से होने वाली परेशानी से अकीदत मन्दो को परेशानी न हो, इस लिए जून माह में उर्स मुबारक किया जाता है।



वही क्लीयर शरीफ से आए हाजी अब्बा ने बताया कि सैयद साहब के उर्स में तबर्रुक ( प्रसाद) के तौर पर रोटी और जर्दा (मीठे चावल) बाटे जाते है, जिसे अकीदत मन्द बड़े श्रद्धा से ग्रहड़ करते है, क्योंकि इस दरगाह पर हर मजहब के मानने वाले आते है, और उर्स के मौके पर किसी वर्ग विशेष की नही बल्कि सभी लोगो के लिए दुआए मांगी जाती है।

वही वरिष्ठ पत्रकार इस्लाम साहब ने बताया कि औलिया इकराम आपसी भाई चारे, प्यार महोब्बत पर काफी जोर देते थे, और आज भी यह परंपरा चली आ रही है।

औलिया इकराम की यह सोच आज के वक्त में काफी अहम हो जाती है कि आज भी आपसी भाई चारे से साथ रहना कितना खूबसूरत है, इन बुजर्गो की हिदायते आज भी उनके मानने वाले कायम करें हुए है,  फिलहाल जहाँ रानीखेत की फिजाएं जहाँ सूफियाने तराने से तो गूंजी ही, साथ ही आपसी भाईचारे की मिसाल भी कायम कर रही है।

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