उत्तराखंड विधानसभा में भू-कानून विधेयक पारित,जानिए क्या हैं नए प्रावधान..


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने एक और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए नए भू-कानून को विधानसभा में पारित कर दिया है। यह कानून राज्य के विकास और स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे पहले कैबिनेट ने इस कानून को मंजूरी दी थी, और अब इसे विधानसभा में भी स्वीकृति मिल गई है।
क्यों जरूरी था नया भू-कानून?
राज्य में लंबे समय से बाहरी लोगों द्वारा अंधाधुंध जमीन खरीदने के कारण पहाड़ों की जैव विविधता और स्थानीय संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा था। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने भू-कानून को सख्त बनाने की मांग की थी। सरकार ने इन चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए नए भू-कानून में अहम बदलाव किए हैं।
नए भू-कानून के प्रमुख प्रावधान
कृषि भूमि की बिक्री पर पाबंदी: बाहरी लोगों द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर सख्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। इससे राज्य में भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
पारदर्शी प्रक्रिया: औद्योगिक और विकास परियोजनाओं के लिए भूमि खरीदने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है।
स्थानीय हितों की रक्षा: नए कानून से स्थानीय लोगों को अपनी भूमि बचाने का अधिकार मिलेगा और बाहरी अतिक्रमण पर रोक लगेगी।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में कहा, “यह कानून उत्तराखंड के हित में है और इससे राज्य के लोगों की मांग पूरी होगी। हम स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस कानून से बाहरी अतिक्रमण पर रोक लगेगी और भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।”
कानून का उद्देश्य
नए भू-कानून का मुख्य उद्देश्य राज्य में भूमि की अनियंत्रित बिक्री पर रोक लगाना और स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करना है। इसके तहत कृषि भूमि की बिक्री को नियंत्रित किया जाएगा और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए भूमि खरीदने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाएगा।
कानून की बारीकियां
कृषि भूमि की बिक्री: बाहरी लोगों द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं।
औद्योगिक परियोजनाएं: औद्योगिक और विकास परियोजनाओं के लिए भूमि खरीदने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है।
स्थानीय हितों की रक्षा स्थानीय लोगों को अपनी भूमि बचाने का अधिकार मिलेगा और बाहरी अतिक्रमण पर रोक लगेगी।
उत्तराखंड में भूमि कानून में संशोधन के लिए प्रस्तावित विधेयक, 2025 के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:
भूमि कानून संशोधन विधेयक, 2025 का उद्देश्य
भूमि क्रय और उपयोग को विनियमित करना: इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड में विभिन्न प्रयोजनों के लिए भूमि क्रय करने की प्रक्रिया को स्पष्ट और व्यवस्थित करना है। इसमें भूमि के क्षेत्रफल, उपयोग के प्रयोजन, और नागरिक निकायों के अंतर्गत आने वाली भूमि के संबंध में राजस्व न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट किया गया है।
उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 में संशोधन: यह विधेयक उत्तराखंड के संदर्भ में इस अधिनियम में आवश्यक संशोधन करता है ताकि राज्य में भूमि संबंधी विवादों और अनियमितताओं को कम किया जा सके।
प्रमुख प्रावधान
भूमि क्रय की अनुमति:
विधेयक के तहत, औद्योगिक प्रयोजनों, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, आयुष, और अन्य सार्वजनिक हित के प्रयोजनों के लिए भूमि क्रय की अनुमति दी जाएगी।
भूमि क्रय से पहले संबंधित विभागों द्वारा भूमि अनिवार्यता प्रमाण-पत्र (Land Essentiality Certificate) जारी किया जाएगा। यह प्रमाण-पत्र निवेश की मात्रा, रोजगार सृजन, और प्लांट एवं मशीनरी के परिप्रेक्ष्य में प्रस्ताव का आकलन करने के बाद जारी किया जाएगा।
कृषि और औद्यानिक भूमि का क्रय:
केवल हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों में कृषि और औद्यानिक प्रयोजनों के लिए भूमि क्रय की अनुमति दी जाएगी।
क्रेता को यह शपथ पत्र देना होगा कि भूमि का उपयोग केवल कृषि या औद्यानिकी के लिए किया जाएगा। यदि भूमि का उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए किया जाता है, तो अंतरण शून्य हो जाएगा।
विशेष श्रेणी के भूमिधर:
यदि कोई व्यक्ति जो उत्तराखंड का मूल निवासी नहीं है, वह भूमि क्रय करता है, तो वह विशेष श्रेणी का भूमिधर माना जाएगा। ऐसे भूमिधर केवल राज्य सरकार की अनुमति से ही भूमि क्रय कर सकेंगे।
विशेष श्रेणी के भूमिधर बैंक या वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने के लिए अपनी भूमि को बंधक रख सकते हैं।
भूमि अंतरण की शर्तें:
यदि क्रेता उत्तराखंड का मूल निवासी नहीं है, तो उसे भूमि का उपयोग उसी प्रयोजन के लिए करना होगा जिसके लिए अनुमति दी गई थी। यदि वह भूमि का उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए करता है, तो अंतरण शून्य हो जाएगा।
यदि क्रेता उत्तराखंड का मूल निवासी है, तो वह भूमि का उपयोग किसी भी प्रयोजन के लिए कर सकता है।
पट्टे की अवधि:
कृषि, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, और अन्य कृषि संबंधी गतिविधियों के लिए भूमि को अधिकतम 30 वर्षों के लिए पट्टे पर दिया जा सकता है।
संशोधन के कारण
भूमि संबंधी विवादों को कम करना: उत्तराखंड में भूमि संबंधी विवादों और अनियमितताओं को कम करने के लिए यह संशोधन आवश्यक था।
आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: औद्योगिक, पर्यटन, और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के लिए भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
कृषि और पर्यावरण संरक्षण: कृषि और पर्यावरण संरक्षण के लिए भूमि के उपयोग को विनियमित करना।
उत्तराखंड सरकार का यह कदम राज्य के विकास और स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। नए भू-कानून से राज्य में भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और बाहरी अतिक्रमण पर रोक लगेगी। यह कानून उत्तराखंड के लोगों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है।


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