उत्तराखंड : चुनाव आते ही रूठो को मनाने को तैयार हुई पार्टियां..किसान और सिख समाज पर हुई मेहरबान..
उत्तराखंड : तराई में बसने वाले किसानों और सिख समुदाय को चुनावी दंगल में रिझाने की राजनीतिक दलों की कोशिशें तेज हो गयी है, जिसके चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल अपने अपने हथकंडे अपना रहे है, किसान आंदोलन के चलते भाजपा से नाराज चल रहे किसानों को भाजपा कैसे अपने पाले में खींचता है और सत्ता से विमुख कांग्रेस कैसे रिझाती है इसके लिए हर कोई अपनी विषाद बिछाने में लगा है,
उत्तराखंड में सत्ताधारी बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए हर समीकरण को साधने में जुटी है, इसके लिए पार्टी हर मोर्चे पर विपक्ष की घेराबंदी की रणनीति बना चुकी है, युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी को कमान सौंपने के साथ ही बीजेपी डैमेज कंट्रोल को भी लगातार नौकरशाही से लेकर पार्टी स्तर और संवैधानिक पदों पर भी सभी समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है। नौकरशाही में बड़ा फेरबदल करते हुए मुख्य सचिव एसएस संधू को बनाया गया, हाल ही में पार्टी ने चुनाव प्रभारी नियुक्त किए इसमें सरदार आरपी सिंह को सह प्रभारी बनाया गया, वहीं अब राज्यपाल पद पर सिख समुदाय और आर्मी बैकग्राउंड से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह को उत्तराखंड लाना बीजेपी की चुनावी रणनीति का ही हिस्सा बताया जा रहा है।
उत्तराखंड में किसानों के हरिद्वार, नैनीताल, यूएस नगर, देहरादून जैसे जिलों में सीधा-सीधा असर है। सिख समुदायों का उत्तराखंड में पवित्र धाम हेमकुंड साहिब भी है। इस कारण सिख समुदायों का उत्तराखंड से अलग लगाव है। यही कारण है कि उत्तराखंड के पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला को बनाया गया था। कांग्रेस की तराई क्षेत्र में परिवर्तन यात्रा और पूर्व सीएम हरीश रावत का पंजाब के साथ ही सिख समुदायों को लेकर चुनावी रणनीति से भी बीजेपी की चुनावी टेंशन बढ़ी हुई है। परिवर्तन यात्रा में कांग्रेस को सिखों का खासा सपोर्ट मिला। हरीश रावत का सिख समुदायों को अपने पक्ष में करने की रणनीति उत्तराखंड के चुनाव में भी काम आ सकती है। इसी को देखते हुए बीजेपी ने सिख समुदायों पर विशेष रणनीति के तहत निर्णय लिए हैं।
बहरहाल 2022 का चुनावी दंगल काफी दिलचस्प होने वाला है, पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों के मतदाताओं की भी इस चुनावी समर में अहम भूमिका रहने वाली है, वहीं किसानों की नाराजगी और सिख समुदाय से भाजपा की बेरुखी किसी से छुपी नहीं है, इसी डेमेज कन्ट्रोल में भाजपा पुरी तरह से जुट गयी है तो प्रदेश की सत्ता से उतरी कांग्रेस भी मैदानी क्षेत्रों पर पुरी तरह से फोकस करते हुए किसानों और सिख समुदाय की हितैषी बनकर खुद को सामने कर रही है, देखना होगा कि आखिर ये दोनो ही राजनीतिक दल अपने हथकंडों से कितने सफल हो पाते हैं और कितना वोट बैंक खींच पाते है।
बाईट- संदीप सहगल.. महानगर अध्यक्ष कांग्रेस
बाईट- राम मेहरोत्रा…. वरिष्ठ भाजपा नेता
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