हल्द्वानी – नियमानुसार राज्य की वार्षिक आडिट रिपोर्ट हर साल विधानसभा पटल पर रखी जानी चाहिए लेकिन दो साल से यह सदन के पटल पर नहीं आई। किस विभाग में कितना बजट आया, कहां खर्च हुआ और कहां बर्बादी हुई किसी को कोई खबर नहीं ।
शुक्रवार को गैरसैंण विधानसभा सत्र समाप्त हो गया लेकिन न तो सरकार की ओर से आडिट रिपोर्ट सदन मे पुटअप की गई और न ही विपक्ष की ओर से इस बारे में पूछा गया ।
दरअसल उत्तराखण्ड लेखापरीक्षा अधिनियम 2012 पारित होने के बाद 7 जून 2012 को इसकी अधिसूचना जारी हुई । इस अधिनियम की धारा 8(3) में प्रावधान है कि निदेशक लेखा की एक संहत लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार करेगा या करायेगा और उसे राज्य विधान सभा के समक्ष रखे जाने के लिए राज्य सरकार को प्रतिवर्ष भेजेगा ।
नियम बनने के बाद शुरु के दो वर्षो को छोड़कर सरकार ने कभी भी हर वर्ष आडिट रिपोर्ट सदन के समक्ष नहीं रखी । इस बावत आरटीआई के जरिए सूचना मांगे जाने और मीडिया में सवाल उठने पर सरकार ने वर्ष 2014-15 से वर्ष 2021-22 तक आठ सालो की रिपोर्ट एक साथ पिछले सत्र में सदन के समक्ष रखी थी ।
रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चन्द्र पाण्डे का कहना है कि सभी विभागों के आडिट में उजागर हुई अनियमितताओ और गबन व दुर्विनियोग से सम्बन्धित आपत्तियों को संकलित कर आडिट रिपोर्ट सदन मे रखी जाती तो इसकी समीक्षा होती । इसमे सुधार व नियन्त्रण के लिए सरकार ठोस कदम उठा सकती थी । उन्होंने कहा कि इस स्थिति के चलते जीरो टॉलरेंस के दावों पर उठने वाले सवालों से बचने के लिए सरकार को यह समझना होगा कि कायदे कानूनों की अनदेखी के मामलों में जवाबदेही तय करना कितना जरुरी है।
उन्होंने कहा कि पूर्व में आठ साल की रिपोर्ट सदन के समक्ष रखते समय किसी ने यह पूछने की जरुरत नहीं समझी कि इन्हें हर वर्ष सदन में क्यों नहीं रखा गया ? कहा कि उसी समय जवाबदेही तय हो जाती तो ऐसा नहीं होता ।
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