उत्तराखण्ड में नैनीताल की सिविल सोसाइटी ने हाईकोर्ट को नैनीताल से अन्यत्र शिफ्ट करने के आदेश पर प्रार्थना कर कहा कि वो पुनःविचार याचिका कर न्यायालय से जनभावनाओं का ध्यान रखते हुए हाईकोर्ट को नैनीताल अथवा पहाड़ी क्षेत्र में स्थापित कर दें।
नैनीताल की सिविल सोसाइटी ने तल्लीताल के एक निजी आवास में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हाईकोर्ट को शिफ्ट करने की मुहिम पर वीरोध व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इसे हटाना ही है तो गैरसैण में स्थापित करें। वक्ताओं ने कहा कि राज्य गठन से पूर्व 1994 में कौशिक समिति के सामने जनता ने अपने मत में हाईकोर्ट को गैरसैण स्थापित करने के लिए इच्छा जताई थी।
बैठक में अल्मोड़ा से आए एक्टिविस्ट पी.सी.तिवारी ने कहा कि सरकार ने पहले राज्य निर्माण के बाद 24 वर्षों की समीक्षा करनी चाहिए और देहरादून में चल रही अस्थाई राजधानी कैसे चल रही है यह बताएं ? अगर वहां अस्थाई राजधानी है तो वहाँ के पक्के निर्माणों की अनुमाती देने के लिए कौन दोषी है ? सरकार और न्यायालय ने मनमाने निर्णय न लेकर सभी की इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए।
राजधानी, हाईकोर्ट और तमाम कार्यालयों को इधर उधर न रखकर गैरसैण के इर्द गिर्द रखा जाए। कहा कि यहां सुविधाएं नहीं हैं तो पैदा करें। एक्टिविस्ट और पत्रकार राजीव लोचन साह ने कहा कि हम लोग सिविल सोसाइटी की तरफ से अधिवक्ताओं के साथ मिलकर न्यायालय से प्रार्थना कर रहे हैं कि हाईकोर्ट यहीं रखें और अगर ले ही जाना है तो पहाड़ों में ही इसे रखा जाए। इसे ‘ब्लेसिंग इन डिसगाइस’ कहा जाना चाहिए, क्योंकि इसने गैरसैण को राजधानी बनाने जैसे अहम मुद्दे को एक बार फिर से गर्म कर दिया है। जो लोग शिफ्टिंग के मुद्दे के माध्यम से क्षेत्रवाद फैला रहे हैं उनका वीरोध करना चाहिए।
कहा गया कि माननीय उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के क्रम में मौखिक रूप से हाईकोर्ट के लिये गौलापार, हल्द्वानी को अनुपयुक्त बतलाते हुए इसे ऋषिकेश के आई.डी.पी.एल.या अन्यत्र स्थापित करने का सुझाव व्यक्त किया। बाद में अपने लिखित आदेश में न्यायालय ने इस इंस्टीट्यूशन को नैनीताल के लिए अनुपयुक्त बताते हुए नये स्थान के लिये एक तरह का ‘जनमत संग्रह’ छेड़ दिया। इस सम्बंध में प्रदेश सरकार से भी आख्या माँगी गई।
आज हुई इस प्रेस वार्ता के माध्यम से संगठन से जुड़े लोगों ने न्यायालय से इस इंस्टीट्यूशन को नैनीताल अथवा किसी पहाड़ी क्षेत्र में रखने को कहा है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि उच्च न्यायालय भी जनता की भावनाओं का सम्मान करेगी। संगठन के लोगों ने ये भी कहा है कि न्यायालय ने अपने इस फैसले में बहुत सी ऐसी बातें कहीं हैं, जो या तो उसके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करती हैं या फिर परस्पर विरोधाभासी हैं।
कहा कि सरकार ने अपनी कैबिनेट बैठक में इस बारे में निर्णय लिया है और उस निर्णय को कार्यान्वित करने की दिशा में प्रयत्नशील है। ऐसे में माननीय न्यायालय का इस बारे में निर्णय देना विधायिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण ही माना जायेगा। इस मौके पर प्रो.शेखर पाठक, प्रो.अजय रावत, उमा भट्ट, राजीव लोचन साह, दिनेश उपाध्याय, डी.के.जोशी, ज़हूर आलम आदि मौजूद रहे।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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