उत्तराखण्ड के नैनीताल में तेज बरसात के बावजूद नैना पीक क्षेत्र से निकलने वाली दो से तीन नालियों के सूखे रहने से क्षेत्रवासी भयभीत हैं। उनके भय का मुख्य कारण 18 सितंबर 1880 का वो भूस्खलन है, जिसका कारण पहाड़ के एक हिस्से में अत्यधिय जल भराव बताया गया था। सिंचाई विभाग ने कहा कि जल भूमिगत हो गया है और सरकार ने संबंधित विभाग से सर्वे कराना चाहिए।
नैनीताल में पॉलिटेक्निक इंस्टीयूट, शेरवानी लॉज, धूप कोठी, ए.टी.आई., बालिका विद्या मंदिर, होटल और हाइकोर्ट समेत बड़े घनत्व वाले रिहायशी क्षेत्र के ठीक ऊपर बसे नैना पीक की पहाड़ी से इनदिनों लगातार बोल्डर गिर रहे हैं। इससे आबादी में मानव जीवन के साथ भवनों को भी खतरा हो गया है।
नैना पीक के नीचे तीन से चार फीट की एक बड़ी दरार भी देखी गई है। क्षेत्रवासी और समाजसेवी भूपेंद्र बिष्ट ने नालियों के सूखने से बड़ी तबाही की आशंका जताई है। उन्होंने सरकार से इसे रोकने के उचित उपाय करने की प्रार्थना की है। इसके अलावा उन्होंने इस क्षेत्र में भूस्खलन रोकने के लिए संबंधित पेड़ पौधे लगाने की मांग की है। भूपेंद्र ने 1987 के नैना पीक भूस्खलन को याद करते हुए बताया कि इसी क्षेत्र से मलुवा और बोल्डर लुढ़ककर आए थे, जिससे एक व्यक्ति की मौत और कई मवेशी उसमें दब गए थे।
मलुवे से घर श्रतिग्रस्त हो गए और वर्तमान हाइकोर्ट क्षेत्र में बने ब्रुखिल हॉस्टल समेत समीपवर्तीय होटलों में मलुवा घुस गया था। तीन दिनों से हो रही तेज बरसात के बावजूद उसी विनाशकारी नाला नंबर 26 में एक बूंद पानी के नहीं होने के कारण भूपेंद्र समेत अन्य क्षेत्रवासी आशंकित हैं। उनका कहना है कि मल्लीताल के ब्रिटिशकालीन विक्टोरिया होटल में जानलेवा भूस्खलन का भी ऐसा ही हाल था। वहां भी सर्वे के बाद जमीन के भीतर जलभराव और फिर एकसाथ भूस्खलन के रूप में निकासी देखी गई थी जिसमें 153 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।
नैनीताल शहर के नालों की देखरेख करने वाले सिंचाई विभाग के एस.डी.ओ. डी.डी.सती का कहना है कि इस क्षेत्र में निर्माण होने के कारण नालियों का जल भूमिगत हो गया है और सरकार ने इसे भूगर्भ वैज्ञानिक और संबंधित विभागों से सर्वे कराना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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