उत्तराखंड की विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का ड्राफ्ट पेश कर दिया गया है. इसे कॉमन सिविल कोड का नाम दिया गया है. इस ड्राफ्ट में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर भी प्रावधान हैं. UCC ड्राफ्ट कहता है कि जो भी 2 लोग लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं, उन्हें रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा. रजिस्ट्रेशन कराये बिना लिव-इन में रहने लगे और पकड़े गए तो 6 महीने की जेल, 25 हज़ार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
वहीं, अगर लिव-इन-रिलेशन से निकलना चाहते हैं यानी इसे टर्मिनेट करना चाहते हैं तो इसका भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा. ये भी रजिस्ट्रार के ऑफिस में ही होगा. यानी लिव-इन के टर्मिनेशन का भी रजिस्ट्रेशन होगा. लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान अगर कोई संतान पैदा होती है, तो उसके हितों का संरक्षण करना होगा और उसे माता-पिता का नाम भी देना होगा. और लिव-इन-रिलेशन ख़त्म करने के लिए सिर्फ़ रजिस्ट्रार ही नहीं, बल्कि अपने साथी को भी स्टेटमेंट ऑफ टर्मिनेशन यानी एक किस्म का नोटिस भेजना होगा, पहले से जानकारी देनी होगी।
रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशन के रजिस्ट्रेशन और टर्मिनेशन का रजिस्टर मेंटेन करना होगा. लिव-इन में रहना चाह रहे दोनों पार्टनर में से किसी एक की भी उम्र अगर 21 साल से कम है तो रजिस्ट्रार उसके परिवार को भी जानकारी देगा।
समान नागरिक संहिता के लागू होने पर प्रदेश में सभी वर्गों में जायज और नाजायज संतान में कोई भेद नहीं हो सकेगा। ड्राफ्ट में सभी वर्गों में पुत्र और पुत्री को संपत्ति में समान अधिकार देने का प्रावधान किया गया है। नाजायज बच्चों को भी उस दंपति की जैविक संतान ही माना गया है।
समान नागरिक संहिता में गोद लिए हुए बच्चों, सरोगेसी द्वारा जन्म लिए गए बच्चों व असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी द्वारा जन्म लिए गए बच्चों में कोई भेद नहीं होगा। उन्हें अन्य की भांति जैविक संतान ही मान गया है।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी व बच्चों को समान अधिकार दिया गया है। उसके माता-पिता को भी उसकी संपत्ति में समान अधिकार दिया गया है। जबकि पुराने कानूनों में सिर्फ माता को ही मरने वाले की संपत्ति में अधिकार प्राप्त था।
सिविल कोड के बारे में
देश की आज़ादी के बाद से UCC पर ड्राफ्ट लाने वाला उत्तराखंड पहला राज्य है. एक्सपर्ट कमिटी ने जो बिल तैयार किया है, उसमें लगभग 400 सेक्शन हैं. इस ड्राफ्ट में प्रदेश भर से ऑनलाइन और ऑफलाइन 2.31 लाख सुझावों को शामिल किया गया है. इस बिल को यूनिफॉर्म सिविल कोड की बजाय ‘कॉमन सिविल कोड’ का नाम दिया गया है. और एक ख़ास बात है, राज्य की जनजातियों पर कॉमन सिविल कोड लागू नहीं होगा।
राज्यपाल के दस्तखत के बाद विधेयक, कानून का रूप लेगा. हालांकि यह कानून पूरे उत्तराखंड पर लागू नहीं होगा. दरअसल, समान नागरिक कानून से देश की किसी जनजाति के रीती-रिवाजों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. वास्तव में, उनके तौर-तरीकों से इस कानून का कोई सम्बन्ध नहीं है. देश में उनके संरक्षण के लिए भारत सरकार और संविधान सभा दोनों में व्यवस्था की गई है।
विधेयक में लिखा गया है- भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25), सहपठित अनुच्छे 342 के अंतर्गत निर्धारित किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों एवं ऐसे व्यक्तियों व व्यक्तियों के समूहों जिनके परंपरागत अधिकार भारत के संविधान के भाग 21 के अंतर्गत संरक्षित हैं, पर इस संहिता में अन्तर्विषट कोई प्रावधान लागू नहीं होगा।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड में अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 2.89% है. धार्मिक तौर पर बात करें तो राज्य में 82.97% हिन्दू, 13.95 % मुस्लिम, 0.37% इसाई, 2.34% सिख, 0.15 % बौद्ध, 0.09% जैन और अन्य धर्म 0.1 % हैं।
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