SIR पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पड़ी_गड़बड़ी मिली तो रद्द कर देंगे..


सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चुनाव आयोग (ECI) को स्पष्ट संकेत दिया है कि अगर इस प्रक्रिया में कोई भी गैरकानूनी गतिविधि या अनियमितता पाई जाती है, तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। न्यायालय की यह टिप्पणी चुनाव आयोग के लिए एक सख्त चेतावनी के रूप में देखी जा रही है।
15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में SIR प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई को 7 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि सुनवाई 1 अक्टूबर से पहले हो, क्योंकि उस दिन अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जानी है। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 28 सितंबर से दशहरा अवकाश के कारण अगली सुनवाई अक्टूबर में ही संभव होगी।
“अंतिम सूची का प्रकाशन बाधा नहीं” – सुप्रीम कोर्ट
Live law की रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को आश्वस्त करते हुए कहा कि यदि मतदाता सूची की संशोधन प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी या गैरकानूनी कदम पाया गया, तो अंतिम सूची प्रकाशित हो जाने के बावजूद न्यायालय हस्तक्षेप करेगा।
जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा “अंतिम सूची प्रकाशित होने से हमें क्या फर्क पड़ेगा? अगर हमें लगे कि कोई गैरकानूनी काम हुआ है, तो हम कदम उठा सकते हैं।”
यह बयान एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलीलों के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग न तो अपनी मैनुअल का पालन कर रहा है और न ही प्राप्त आपत्तियों को सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म पर डाल रहा है।
पारदर्शिता को लेकर अदालत की सलाह
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने मांग की कि चुनाव आयोग को रोज़ाना दावों और आपत्तियों पर बुलेटिन जारी करने का निर्देश दिया जाए, ताकि प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो सके। इस पर चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बताया कि आयोग साप्ताहिक अपडेट दे रहा है, क्योंकि प्रतिदिन जानकारी देना व्यावहारिक नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर कहा कि “जितनी जानकारी सार्वजनिक की जा सकती है, उतनी करनी चाहिए, इससे पारदर्शिता बढ़ेगी।”
वहीं, जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि आयोग कम से कम प्राप्त आपत्तियों की संख्या तो प्रकाशित कर ही सकता है। हालांकि कोर्ट ने इन टिप्पणियों को अपने आदेश का हिस्सा नहीं बनाया।
आधार कार्ड को लेकर चिंता
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा एक अलग याचिका पर भी विचार किया गया, जिसमें उन्होंने आधार कार्ड को “12वें वैध दस्तावेज़” के रूप में मानने के पिछले आदेश में संशोधन की मांग की। उन्होंने दलील दी कि बिहार में लाखों रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं और चूंकि कोई भी व्यक्ति सिर्फ 182 दिन भारत में रहने के बाद आधार बनवा सकता है, यह दस्तावेज़ नागरिकता या स्थायी निवास का प्रमाण नहीं हो सकता।
जवाब में जस्टिस सूर्यकांत ने संतुलित टिप्पणी करते हुए कहा “कोई भी दस्तावेज़ नकली बनाया जा सकता है – चाहे वह ड्राइविंग लाइसेंस हो या आधार कार्ड। आधार का इस्तेमाल उतनी ही सीमा तक होना चाहिए, जितनी कि कानून में अनुमति दी गई है।”
सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणियाँ साफ़ तौर पर संकेत देती हैं कि अदालत मतदाता सूची की प्रक्रिया को लेकर बेहद गंभीर है और अगर पारदर्शिता व वैधानिकता से समझौता किया गया, तो न्यायालय हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगा। यह चुनाव आयोग के लिए एक कड़ा संदेश है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


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