उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ उत्तराखण्ड को निर्देश दिया है कि जबतक बार कौंसिल ऑफ इंडिया, अधिवक्ता के खिलाफ कदाचार की शिकायत का शुल्क 5500 रुपये करने की मंजूरी नहीं देता है तबतक उत्तराखण्ड बार काउंसिल द्वारा ऐसे मामलों में बढ़ा शुल्क न लेने के न्यायालय में पूर्व दिए गए वक्तव्य का पालन करे। न्यायालय ने बार काउंसिल को दो हफ्ते के भीतर शपथपत्र दाखिल कर ये बताने को कहा है कि अबतक कितने मामलों में 5500 शुल्क लिया गया है ? इस मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी ।
सोमवार को मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने मेरठ निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक सत्यदेव त्यागी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया कि अधिवक्ता के खिलाफ किसी मामले में उसके मुवक्किल द्वारा कदाचार की शिकायत करने पर बार कौंसिल उत्तराखंड द्वारा फीस 750 रुपये से बढ़ाकर 5,500 रुपये करने को चुनौती देती याचिका पर सुनवाई की।
इस मामले में न्यायालय ने उत्तराखंड बार काउंसिल को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने निर्देश दिया है कि जबतक उत्तराखंड बार कौंसिल के शुल्क वृध्दि के प्रस्ताव को बार कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मंजूरी नहीं दी जाती तबतक बढ़ा हुआ शुल्क न लिया जाए ।
याचिका में कहा गया की बार काउंसिल ऑफ इंडिया का नियम है कि वकील के खिलाफ शिकायत करने के लिए अधिकतम 750 रुपये ही लिया जाएगा। जबकि बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड ने अप्रैल 2013 में एक अवैध प्रस्ताव पारित किया है और इस राशि को बढ़ाकर पहले 1700 रुपये और फिर 2022 में 5,500 रुपये कर दिया है। अधिक फीस के कारण वास्तविक शिकायतकर्ता भी अधिवक्ता के कदाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करने में सक्षम नहीं हैं। इस तरह की उच्च फीस निषेधात्मक प्रकृति की है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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