पंचायती चुनाव बहिष्कार का कारण,वर्षों से खोखले आश्वासनों का विकास_ तस्वीरें शर्मिंदा कर देंगी..

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उत्तराखण्ड में नैनीताल से लगे गांव के लोग बीमार बुजुर्गों को आज भी 4 किलोमीटर पैदल दांडी में ले जाने को मजबूर हैं। पिछले दिनों पंचायती चुनाव के बहिष्कार की राह चल रहे ग्रामीणों का सड़क नहीं होना एक बहुत बड़ा दर्द है। बीमारों को दांडी में जंगलों के रास्ते ले जाने के कुछ वीडियो शायद आपको दर्द का एहसास कराए।


नैनीताल से महज़ 9 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बल्दीयाखान से लगभग 4 किलोमीटर दूर पखडण्डी के रास्ते पैदल ही बेलुवाखान ग्रामसभा के सौलिया, कूड़, होली, कुलबखा आदि दर्जनभर गाँव पहुंचा जा सकता है। मोटर मार्ग नहीं होने के कारण इन गांवों के लोगों को पतली पखडण्डी मार्ग से ही पैदल आवाजाही करनी पड़ती है।

ये तब और भी मुश्किल हो जाता है जब, बीमार बुजुर्ग या गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाना होता है, बच्चों को स्कूल जाना होता है, फल, सब्जी, दूध आदि को समय से मंडी पहुंचाना होता है या तत्काल कुछ सामान लाना होता है। ग्रामीण पतली सी उबड़ खाबड़ पखडण्डी से मरीज को नदी नाले पार कराकर बमुश्किल मोटर मार्ग तक पहुंचाते हैं।

एक मुश्किल ये भी है कि, पतली पखडण्डी होने के कारण इनकी दांडी भी एक एक व्यक्ति के लायक ही बनी है, जिससे ये कंधों पर बहुत भारी पड़ती है। मरीजों को लाना और ले जाना अपने आप में एक चुनौती से कम नहीं है।


विकास से कोसों दूर इन गांव में विद्युत आपूर्ति तो है लेकिन अपनी मर्जी की है। पेयजल का भी कमोवेश वही हाल है, हालांकि ग्रामीणों के पास प्राकृतिक श्रोत भी हैं। ग्रामीण इस मांग को कई वर्षों से उठा रहे हैं और उन्होंने सरकार को प्रत्यावेदन भी दिया है। यहां के लोगों ने पिछले दिनों नेताओं और प्रशासन की अनदेखी और समस्याओं से त्रस्त होकर पंचायती चुनावों का बहिष्कार करने की ठानी थी।

खबरें प्रकाशित होने के बाद प्रशासन गांव पहुंचा और ग्रामीणों को आश्वासन देकर चुनाव बहिष्कार वापस करवाया। आज आजादी के 78 वर्ष पूरे होने के बाद भी विश्वविख्यात नैनीताल से जुड़े गांव का ऐसा हाल देखकर विकास की बात करने वाले भारतीयों की आंखें शर्म से झुकनी चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती

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