उत्तराखंड के औली में 9544 फीट की ऊंचाई पर चल रहे भारत और अमेरिकी सेनाओं के जबदस्त युद्धाभ्यास ने चीन की टेंशन बढ़ा दी है। चीन सीमा से बेहद करीब इस मिलिट्री ड्रिल में दोनों सेनाओं ने एक-दूसरे से युद्ध की कई टेक्निक साझा की। जमीन से लेकर हवा तक दुश्मन को पस्त करने का अभ्यास देखकर चीन अंदर तक तिलमिला हो चुका है।
उत्तराखंड के औली में इन दिनों भारत और अमेरिका के बीच ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज चल रही है. उत्तराखंड के औली में भारत और अमेरिकी सैनिक सबसे खतरनाक युद्धाभ्यास में जुटे हुए हैं। अत्याधुनिक हथियार से लेकर वॉर गेमिंग के हर दांव को आजमाया जा रहा है।
इस अभ्यास में भारतीय और अमेरिकी सैनिकों ने कई युद्ध वाली स्थितियों को समझकर अभ्यास किया है। भारतीय सेना के मुताबिक, युद्धाभ्यास के दौरान फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज, इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप, फोर्स मल्टीप्लायर्स, निगरानी ग्रिड की स्थापना और संचालन, ऑपरेशन्ल लॉजिस्टिक और पर्वतीय युद्ध कौशल को शामिल किया गया है।
प्राकृतिक आपदा से लेकर उग्रवादियों से निपटने की कला को आजमाया गया है। बंधकों को छुड़ाने का भी अभ्यास किया गया है। युद्धाभ्यास में अमेरिकी सेना की 11 एयरबॉर्न डिवीजन की सेकेंड (2) ब्रिगेड हिस्सा ले रही है। इन अमेरिकी पैरा-ट्रूपर्स को ‘स्पार्टन्स’ (स्पार्टा) के नाम से जाना जाता है।
अमेरिकी सेना के अधिकारी ब्रैडी कैरोल ने कहा कि हम फ्लैश फ्लड और इसी तरह की स्थितियों के बारे में एक संयुक्त अभ्यास कर रहे हैं। यह भारतीय सेना और अमेरिकी सेना के बीच रक्षा सहायता मिशन और संबंधों को और मजबूत करने पर केंद्रित है।
एक्सरसाइज कमांडर ब्रिगेडियर पंकज वर्मा ने कहा कि औली में हो रही यह जॉइंट एक्सरसाइज युद्धाभ्यास का 18 वां संस्करण है। इसमें हमने अमेरिकी सेना के साथ इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप की यूएन चार्टर के तहत एक्सरसाइज की।
इस साल युद्धाभ्यास में भारतीय सेना की असम रेजीमेंट की एक पूरी बटालियन हिस्सा ले रही है। ये बटालियन फिलहाल सेना की लखनऊ स्थित मध्य कमान (सूर्या कमान) की एक इंडिपेंडेट ब्रिगेड की अधीन है।भारतीय सेना को हाई एल्टीट्यूड में लड़ाई लड़ने का अनुभव है। हाई एल्टीट्यूड में लड़ाई लड़ने, लॉजिस्टिक और मेडिकल की जो क्षमता भारतीय सेना के पास है वह किसी दूसरे देश के पास नहीं हैं।
ये युद्धाभ्यास एलएसी के विवादित, बाड़ाहोती एरिया के करीब हो रहा है. एलएसी का बाड़ाहोती इलाका एक डिमिलिट्राइज जोन है, जिस पर भारत और चीन अपना अपना दांवा करते आए हैं. पिछले कई सालों में चीनी सेना ने यहां कई बार घुसपैठ की कोशिश की है. साथ ही एयर स्पेस का भी उल्लंघन किया है.
उत्तराखंड खंड का औली करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर है और यहां से लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलएसी करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर है. उत्तरांखड से सटी एलएसी भारतीय सेना के सेंट्रल सेक्टर का हिस्सा है. यहां पर एलएसी का बाड़ोहती इलाका भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवादित रहा है. कुछ दशक पहले इसे दोनों देशों की सेनाओं ने डिमिलिट्राइज जोन घोषित किया था यानी यहां हथियारों के साथ सैनिक नहीं जा सकते हैं.
गलवान घाटी की हिंसा और पिछले ढाई साल से पूरी एलएसी पर चल रहे तनाव के चलते यहां रूल ऑफ इंगेजमेंट बदल गए हैं और भारत कोई भी चूक नहीं होने देना चाहता. यह वजह है कि इस इलाके से सटे एरिया में भारतीय सेना और आईटीबीपी (ITBP) की सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गई है. साथ ही यहां जबरदस्त निगहबानी की जाती है. गलवान घाटी की हिंसा के बाद से बाड़ाहोती और उत्तराखंड से सटी पूरी एलएसी को सेना की लखनऊ स्थित मध्य कमान (सूर्या कमान) के अंतर्गत कर दिया गया था.
ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज क्यों अहम है?
उत्तराखंड से सटी करीब 750 किलोमीटर लंबी एलएसी पर बाड़ाहोती के अलावा नेपाल ट्राइ-जंक्शन पर कालापानी-लिपूलेख का एरिया भी भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा कारण रहा है.
पिछले दो साल के दौरान जब पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी चल रही थी, तब इस इलाके में भी चीन की सैन्य गतिविधियां बढ़ने की खबरें लगातार आती रहती थी. एक बार तो चीनी सैनिकों ने यहां भारतीय गडरियों की झोपड़ी तक जला डाली थी. यह वजह है कि औली में चल रही भारत और अमेरिका के ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज बेहद अहम हो जाती है.
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