उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के रिटायर्ड कर्मचारियों से सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा के नाम पर जबरन उनकी पेंशन से स्वाथ्य बीमा के नाम पर हर माह पैसा वसूलने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष पेंशनधारियों के लिए विकल्प पत्र जारी कर पेंशनधारियों की राय ले कि उन्हें इस योजना में बने रहना है या नही ? यह तय करना पेंशनधारकों पर निर्भर होगा ।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत सम्पति है सरकार उन पर इसे जबरन लागू नही कर सकती है। आज मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खण्डपीठ में हुई।
आज हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को यह भी बताया कि इस योजना में यह भी प्रावधान है कि इसका लाभ कोई कर्मचारी ले या ना ले उसे बाध्य नही किया जा सकता लेकिन सरकार ने इसे अनिवार्य कर दिया है, जो पेंशन अधिनियम की धारा 300 (अ) का उल्लंघन है।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी गणपत सिंह बिष्ठ व अन्य ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने स्वाथ्य बीमा के नाम पर उनकी अनुमति के बिना 21 दिसम्बर 2020 को एक साशनादेश जारी कर उनकी पेंशन से अनिवार्य कटौती 1 जनवरी 2021 से शुरू कर दी है।याचिकर्ताओ का कहना है कि यह उनकी व्यक्तिगत सम्पति है सरकार इस पर इस तरह की कटौती नही कर सकती। यह असवैधानिक है। पूर्व में यह व्यवस्था थी कि कर्मचारीयो का स्वाथ्य बीमा सरकार खुद वहन करती थी परन्तु अब सरकार उनके पेंशन से स्वाथ्य बीमा के नाम पर हर महीने पैंसा काट रही है। लिहाजा इस सम्बंध में जारी पूर्व व्यवस्था को लागू किया जाय।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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