

उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने राज्य में सड़क किनारे और वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के मामले में सभी जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में समन्वय समिति बनाकर कोई भी कदम उठाने से पहले सीमांकन करने के निर्देश दिए हैं। खंडपीठ की तरफ से घोषित न्यायमित्र दुष्यंत मैनाली ने न्यायालय को बताया थी कि अतिक्रमण तो हटा लेकिन विभागों और लोगों के बीच समन्वय कम है।
पूर्व में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सुओ मोटो(स्वतः संज्ञान)लेकर जनहित याचिका के रूप में मानते हुए प्रदेश के जिलाधिकारियों और डी.एफ.ओ.से सड़क किनारे बने निर्माण को बिना सुनवाई के अवैध मानते हुए ध्वस्त करने के आदेश दिए थे। बाद में उच्च न्यायालय ने सड़क किनारे बैठे वैध और अवैध निर्माणों को राहत देते हुए सरकार से कहा कि वो सभी अतिक्रमणकारियों के पक्ष को अच्छी तरह से सुनने के बाद ही मामले को निस्तारित करें। वो अतिक्रमणकारियों के निर्माण को बिना सुने ध्वस्त न करें। इस मामले के गर्माते ही कुछ पक्षों ने इंटरवेंशन एप्लिकेशन लगाई थी।
आज मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय की तरफ से नियुक्त न्याय मित्र(एमएक्स क्यूरी)दुष्यंत मैनाली ने एक जांच रिपोर्ट पेश की।
उन्होंने कहा कि सड़क किनारे से अतिक्रमण हटाए जा रहे हैं, लेकिन भूमि स्वामियों के साथ संबंधित विभागों का समन्वय नहीं बना है और इस वजह से भूमियों का सीमांकन नहीं हो रहा है। दुष्यंत ने बताया कि सुनवाई के बाद न्यायालय ने सभी जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में जिलावार समन्वय समिति बनाकर अपने अपने क्षेत्रों में भूमियों का सीमांकन करने के निर्देश दिए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती


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