भक्ति का वास्तविक स्वरूप : परमात्मा से गहरा जुड़ाव और निःस्वार्थ प्रेम
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का प्रेरणादायक प्रवचन
हल्द्वानी – ‘‘भक्ति वह अवस्था है, जो जीवन को दिव्यता और आनंद से भर देती है। यह न इच्छाओं का सौदा है, न स्वार्थ का माध्यम। सच्ची भक्ति का अर्थ है परमात्मा से गहरा जुड़ाव और निःस्वार्थ प्रेम।’’ यह प्रेरणादायक उद्धरण निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने हरियाणा के संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा में आयोजित ‘भक्ति पर्व समागम’ के दौरान विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
इस अवसर पर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और निरंकारी राजपिता रमित जी के पावन सान्निध्य में श्रद्धा और भक्ति की अनुपम छटा देखने को मिली। देश-विदेश से आए हजारों श्रद्धालुओं ने इस दिव्य समागम में भाग लिया और सत्संग के माध्यम से आध्यात्मिक आनंद की अनुभव किया।
सतगुरु माता जी ने अपने प्रवचन में भक्ति के वास्तविक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान ही सच्ची भक्ति का आधार है। भक्ति जीवन को उत्सव में बदल देती है, लेकिन इसके लिए निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण का भाव होना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान हनुमान जी, मीराबाई और बुद्ध भगवान के भक्ति स्वरूप अलग हो सकते हैं, लेकिन उनका मर्म एक ही था – परमात्मा से अटूट जुड़ाव।
सतगुरु माता जी ने यह भी कहा कि गृहस्थ जीवन में भी भक्ति संभव है, यदि हर कार्य में परमात्मा का आभास हो। उन्होंने माता सविंदर जी और राजमाता जी के जीवन को भक्ति और समर्पण का सर्वोत्तम उदाहरण बताते हुए श्रद्धालुओं को प्रेरित किया।
समागम के दौरान अनेक कवियों और वक्ताओं ने भक्ति की महिमा का गान किया, और संतों के तप, त्याग एवं ब्रह्मज्ञान के प्रचार-प्रसार में उनके अमूल्य योगदान को स्मरण किया।
निरंकारी मिशन का मूल सिद्धांत यही है कि भक्ति तभी सार्थक बनती है जब हम परमात्मा के तत्व को जानकर उसे अपनाते हैं। सतगुरु माता जी के अमूल्य प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को भक्ति के वास्तविक स्वरूप को समझने और उसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी।
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