नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश के बाद बनभूलपुरा व गफूर बस्ती में रेलवे की 78 एकड़ जमीन से 4365 अवैध कच्चे-पक्के भवनों को हटाने के लिए रेलवे, पुलिस व प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है। आरपीएफ व पीएसी की पांच-पांच कंपनियां तैनात हो गई हैं और चार दिन बाद पैरामिलिट्री फोर्स की 14 कंपनियां भी पहुंच जाएगी।मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के चलते कल 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है देश के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण और सलमान खुर्शीद ने भी याचिका लगाई है ।
जहां कल सुनवाई होनी है ऐसे में हल्द्वानी के लोगों को प्रशांत भूषण से भी काफी उम्मीद है बनभूलपुरा क्षेत्र के लोगों के लिए एक बड़ा दिन है, क्योंकि रेलवे अतिक्रमण के मामले में कल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। यह सुनवाई कल सुबह 10:30 बजे मुख्य न्यायाधीश की डबल बेंच में होगी, ऐसे में कल बनभूलपुरा के लोगों के साथ ही रेलवे, पुलिस और प्रशासन की निगाह बनी रहेगी।फिलहाल क्षेत्र के तमाम जनप्रतिनिधियों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है और इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी, अब देखना यह होगा कि कल सुप्रीम कोर्ट से क्या सुप्रीम फैसला होता है।नैनीताल हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा क्षेत्र की 78 एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा मनाते हुए 20 दिसम्बर को आदेश दे दिया था, कि एक सप्ताह के भीतर अवैध कब्जे को खाली कराया जाए, जिसके बाद रेलवे पुलिस और प्रशासन ने संयुक्त रूप से इसमें कार्रवाई शुरू कर दी है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस ए नजीर और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा मामले का उल्लेख करने के बाद मामले को सुनवाई के लिए स्वीकृति दी है।
बनभूलपुरा के हजारों निवासियों ने अतिक्रमण हटाने का विरोध करते हुए कहा था कि इससे वे बेघर हो जाएंगे और उनके स्कूली बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। इस कदम से बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग प्रभावित होंगे। अब उच्चतम न्यायालय हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय की याचिका को चुनौती देने वाली याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई करेगा।हालांकि स्थानीय लोगों एवं कुछ कांग्रेस व सपा आदि राजनीतिक दलों की ओर से इस मुद्दे पर राजनीति भी तेज हो चुकी है। मामले में हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश व अन्य राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं।
हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाले रविशंकर जोशी भी सर्वोच्च न्यायालय में कैविएट दाखिल कर चुके हैं। अब सभी की निगाह सुप्रीम कोर्ट की पांच जनवरी को संभावित सुनवाई पर है।
एक जनवरी को रेलवे की ओर सार्वजनिक नोटिस प्रकाशन और दो जनवरी को मुनादी कराते हुए एक सप्ताह में सभी अतिक्रमणकारियों को कब्जा हटा लेने की चेतावनी दे दी है।इधर, अन्यत्र बसाए जाने की मांग व अतिक्रमण हटाने के विरोध में स्थानीय लोग लगातार धरना, प्रदर्शन और कैंडल मार्च भी निकाल रहे हैं। कांग्रेस, सपा एवं एआइएमआइएम समेत कई संगठन सभाएं कर रहे हैं। स्थानीय महिलाएं व बच्चों के माध्यम से मुद्दे उठाते हुए सड़कों पर दुआ व नमाज अता की जा रही है।आपको बता दें बनभूलपुरा व गफूर बस्ती मुस्लिम बहुल क्षेत्र हैं लेकिन अतिक्रमण की जद में सिर्फ यही समुदाय नहीं है। 35 हिंदू परिवार भी अतिक्रमणकारियों में शामिल हैं। सभी लोग घरों को बचाने के लिए राज्य सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। फिलहाल अतिक्रमण वाले इलाकों में लोगों के घरों का आकलन व गतिविधियों पर बारीकी से निगहबानी में जुटी है एलआइयू ।
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार (5 जनवरी) यानी आज हल्द्वानी में रेलवे की 78 एकड़ जमीन से 4,365 परिवारों को बेदखल करने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करेंगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, क्षेत्र में लगभग 50,000 निवासियों का भाग्य, जिनमें से 90% मुस्लिम हैं, प्रशासन के साथ अधर में लटका हुआ है.
स्थानीय निवासियों के अनुसार, 78 एकड़ क्षेत्र में पांच वार्ड हैं और लगभग 25,000 मतदाता हैं. बुजुर्ग, गर्भवती महिलाओं और बच्चों की संख्या 15,000 के करीब है. 20 दिसंबर के HC के आदेश के बाद, समाचार पत्रों में नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें लोगों को 9 जनवरी तक अपना घरेलू सामान हटाने का निर्देश दिया गया था. प्रशासन ने 10 एडीएम और 30 एसडीएम-रैंक के अधिकारियों को प्रक्रिया की निगरानी करने का निर्देश दिया है.
कई परिवार 1910 के बाद से बनभूलपुरा में गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर कॉलोनियों के “कब्जे वाले इलाकों” में रह रहे हैं. इस क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 10 निजी, एक बैंक, चार मंदिर, दो मजार, एक कब्रिस्तान और 10 मस्जिदें हैं जो पिछले कुछ दशकों में बनी हैं. बनभूलपुरा में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय भी है जो 100 साल से अधिक पुराना बताया जाता है.
‘हमें परेशान किया जा रहा है’
यहां के निवासियों के मन में एक अहम सवाल यह है कि आखिर बिना अनुमति के क्षेत्र में अस्पताल और स्कूल कैसे बन सकते हैं. 60 से अधिक वर्षों से वहां रह रहे आबिद शाह खान ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “रेलवे हमें अचानक यहां से निकलने को कैसे कह सकता है? हमें परेशान किया जा रहा है. हमने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और हमें न्याय मिलने का भरोसा है.”
यहां के निवासियों के मन में एक अहम सवाल यह है कि आखिर बिना अनुमति के क्षेत्र में अस्पताल और स्कूल कैसे बन सकते हैं. 60 से अधिक वर्षों से वहां रह रहे आबिद शाह खान ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “रेलवे हमें अचानक यहां से निकलने को कैसे कह सकता है? हमें परेशान किया जा रहा है. हमने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और हमें न्याय मिलने का भरोसा है.”
38 वर्षीय जुनैद खान ने कहा कि उनकी पत्नी को एक कठिन गर्भावस्था हुई है और प्रसव 7 जनवरी को निर्धारित है. उन्होंने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट हमारे बचाव में नहीं आता है तो मेरी 85 वर्षीय मां सहित हमारे पूरे परिवार को स्थानांतरित करना एक अकल्पनीय स्थिति होगी.” कक्षा 6 की छात्रा रिजा फातिमा ने टीओआई को बताया, “मंगलवार को कुल 10,000 महिलाओं ने एक साथ इकट्ठा होकर प्रार्थना की. हमारी परीक्षाएं अगले कुछ हफ्तों में निर्धारित हैं. हम असहाय महसूस कर रहे हैं.”
कुछ याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 2018 में सत्तारूढ़ बीजेपी “मलिन बस्तियों” (झुग्गियों को नियमित नहीं किया गया) के विध्वंस को रोकने के लिए एक अध्यादेश लाई थी और निवासियों को बेदखल करने के बजाय झुग्गी क्षेत्रों को नियमित करने या कम से कम निवासियों को स्थानांतरित करने का फैसला किया. उत्तराखंड में 582 चिन्हित झुग्गी क्षेत्र हैं, जिनमें से 22 हल्द्वानी में हैं और 5 कथित रूप से अतिक्रमित रेलवे भूमि पर हैं.
एक स्थानीय ने कहा, “अध्यादेश इन झुग्गियों के निवासियों को बेदखली से बचाता है, भले ही मामला अदालत में हो… हालांकि, राज्य सरकार हमें केवल इसलिए निकालने के अपने प्रावधान के खिलाफ गई है क्योंकि हम अल्पसंख्यक समुदाय से हैं.” इस पूरे मामले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ”अदालत जो भी फैसला करेगी, राज्य उसका पालन करेगा. उन्होंने कहा, “हम अदालत के फैसले का सम्मान करेंगे. राज्य सरकार इस मामले में पक्षकार नहीं है. यह रेलवे और हाई कोर्ट के बीच है.”
कांग्रेस के पूर्व राज्य प्रमुख और विपक्ष के पूर्व नेता प्रीतम सिंह ने पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मंगलवार को सीएम से मुलाकात की. उन्होंने बेदखली का सामना कर रहे परिवारों की मदद करने के लिए उनके हस्तक्षेप की मांग की थी. बुधवार को पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने निवासियों के समर्थन में एक घंटे का “मौन व्रत” भी रखा.
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