सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कहा है कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों जैसे तमाम पदाधिकारियों को बाकी नागरिकों जितनी ही अभिव्यक्ति की आजादी है कोर्ट ने इनके बोलने की आजादी पर कोई एक्स्ट्रा पाबंदी लगाने की अपील को खारिज किया है. ये फैसला जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने सुनाया है.
मंत्रियों की बेतुकी बयानबाजी पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि बोलने की आजादी पर रोक नहीं लगा सकते हैं. आपराधिक मुकदमो पर मंत्रियों और बड़े पद पर बैठे लोगों की बेतुकी बयानबाजी पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट की संविधान बेंच ने कहा कि मंत्री का बयान सरकार का बयान नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा कि बोलने की आजादी हर किसी नागरिक को हासिल है. उस पर संविधान के परे जाकर रोक नहीं लगाई जा सकती. बेंच ने कहा कि अगर मंत्री के बयान से केस पर असर पड़ा हो तो कानून का सहारा लिया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि मंत्री द्वारा दिए गए बयान को सरकार का बयान नहीं ठहराया जा सकता. यानी किसी भी मंत्री के बयान के लिए सरकार नहीं बल्कि खुद मंत्री ही जिम्मेदार होगा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक-
बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा,
राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सांसदों / विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है.
एक अलग फैसले में न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा,
भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत जरूरी अधिकार है ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके. ये अभद्र भाषा में नहीं बदल सकता.
दरअसल ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान के एक बयान से शुरू हुआ. 29 जुलाई, 2016 में बुलंदशहर में गैंग रेप का मामला सामने आया था. उस पर आजम खान ने आपत्तिजनक बयान देते हुए गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था. तब पीड़िता के पिता ने याचिका दायर की. 2016 में मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया.
बाद में आजम खान ने बयान को लेकर माफी मांगी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था. लेकिन मामले के अन्य पहलुओं को देखते हुए सुनवाई जारी रखी थी. 15 नवंबर को इस मामले में अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, जो देशवासियों के लिए अपमानजनक हों.
‘नहीं लगा सकते अतिरिक्त पाबंदी‘
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले में 6 सवाल तय किए थे. उनका एक-एक कर जवाब दिया. जजों ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में लिखी गई पाबंदियों से अलग बोलने की स्वतंत्रता पर कोई और पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों का हनन होने पर सरकार के अलावा निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट दरवाजा खटखटाया जा सकता है. 4 जजों ने यह भी माना है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को सुरक्षा दे.
‘राजनीतिक दल बनाएं आचरण कोड‘
बेंच की सदस्य जस्टिस नागरत्ना ने बहुमत की इस राय से सहमति जताई कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संविधान से परे नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता, लेकिन उनका मानना था कि निजी व्यक्तियों के खिलाफ अनुच्छेद 19 या 21 के हनन का मुकदमा नहीं हो सकता. उन्होंने संसद से अनुरोध किया कि वह बड़े पद पर बैठे लोगों की बेवजह बयानबाजी के मसले पर विचार कर नियम बनाए. उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक पार्टियों को अपने सदस्यों के लिए आचरण कोड बनाना चाहिए.
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