सुप्रीमकोर्ट : मधुमिता शुक्ला हत्याकांड केस में उत्तराखंड सरकार को आदेश_माफी की समय सीमा तय
सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में 26 वर्षीय कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या मामले में दोषी की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। शनिवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया कि वह दोषी की सजा माफ करने की याचिका पर एक समयसीमा तय करें। इसके साथ ही, राज्य की धामी सरकार को चेतावनी दी गई कि यदि निर्धारित समय में जवाब नहीं दिया जाता है, तो जमानत याचिका की जांच की जाएगी।
गौरतलब है कि मधुमिता शुक्ला की हत्या 9 मई, 2003 को लखनऊ में तब हुई थी जब वह गर्भवती थीं। इस हत्या के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार किया गया था। जानकारी के अनुसार, शुक्ला का त्रिपाठी के साथ संबंध थे, जिसके चलते हत्या की साजिश रची गई और इस सिलसिले में अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया। और सज़ा हुई।
जानिए जानिए कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बारे में सब कुछ
कवियत्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे यूपी के चर्चित नेता और उस ज़माने के कद्दावर मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की सज़ा माफ की जाएगी ?. सजा में ये कटौती उनकी सेहत और जेल में अच्छे व्यवहार की वजह से की जा रही है।
ऐसे में आज हम आपको मधुमिता शुक्ला हत्याकांड की वो कहानी बताएंगे जिसने अमरमणि त्रिपाठी के सितारों को गर्दिश में मिला दिया और उन्हें दो दशक जेल में बिताना पड़े।
तारीख थी 9 मई 2003, यूपी की राजधानी लखनऊ में पेपर मिल कॉलोनी में सिर्फ 24 साल की उभरती हुई कवियत्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
बदमाशों ने उनके दो कमरों के अपार्टमेंट में घुसकर बेहद करीब से उन्हें गोली मारी थी. जिस वक्त मधुमिता शुक्ला को गोली मारी गई उस वक्त वो 7 महीने की गर्भवती थी. हालांकि उनके गर्भवती होने की जानकारी बाद में सामने आई थी।
नौकर ने खोले थे अहम राज़
मधुमिता शुक्ला की हत्या की खबर जैसे ही सामने आई कुछ ही मिनटों में पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. जांच के दौरान पुलिस अधिकारियों को मधुमिता के नौकर ने जो जानकारी दी उससे हड़कंप मच गया. मधुमिता के घर काम करने वाले देशराज ने पुलिस को अमरमणि और मधुमिता के प्रेम प्रसंग के बारे में जानकारी दी. उस वक्त उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी और अमरमणि कद्दावर मंत्रियों में शुमार थे, इसलिए पुलिस बेहद संभल कर जांच कर रही थी।
जब मधुमिता के शव का पोस्टमार्टम करने के बाद उसके बॉडी को गृह जनपद लखीमपुर भेजा जा रहा था तो रास्ते मे ही एक पुलिस अधिकारी की नजर मेडिकल रिपोर्ट पर लिखी एक टिप्पणी पर पड़ी. मेडिकल रिपोर्ट पर जो लिखा था उसने जांच की पूरी दिशा ही बदल दी.
गर्भवती थी मधुमिता
दरअसल, रिपोर्ट में मधुमिता के गर्भवती होने का जिक्र था. मधुमिता शुक्ला के प्रग्नेंट होने की जानकारी सामने आने के बाद अधिकारियों ने उसके शव को तत्काल रास्ते से ही वापस मंगवाकर दोबारा परीक्षण कराया. डीएनए जांच में सामने आया कि मधुमिता के पेट मे पल रहा बच्चा कद्दवार नेता अमरमणि त्रिपाठी का था. शुरुआत में इसकी जांच सीबी सीआईडी को दे दी गई. कहा जाता है कि इस केस में अमरमणि त्रिपाठी को क्लीन चिट नहीं दिए जाने के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने सीबी सीआईडी के महानिदेशक महेंद्र लालका को निलंबित कर दिया था।
मधुमिता शुक्ला की बहन निधि ने किया संघर्ष
चूंकि अमरमणि त्रिपाठी उस समय मंत्री थे और सरकार में उनका प्रभाव था इसलिए मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला को लगने लगा कि उनकी बहन को न्याय मिलना मुश्किल है क्योंकि सिस्टम अमरमणि त्रिपाठी के लिए काम कर रहा था. अपनी बहन को न्याय दिलाने और हत्यारे को जेल पहुंचाने के लिए निधि शुक्ला बड़े-बड़े मंत्रियों और अफसरों से मिलती रही लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इसके बाद निधि शुक्ला बहन को इंसाफ दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. उन्होंने निष्पक्ष जांच के लिए केस को लखनऊ से दिल्ली या फिर तमिलनाडु ट्रांसफर करने की मांग की. कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2005 में इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड केस को उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया था।
सीबीआई ने किया पर्दाफाश
जांच के दौरान एक तरफ मधुमिता हत्याकांड में रोज नई-नई जानकारी सामने आ रही थी वहीं दूसरी तरफ सरकार पर निष्पक्ष जांच के लिए दबाव बढ़ता ही जा रहा था. विपक्ष के तेवर और बढ़ते दबाव की वजह से बीएसपी सरकार को आखिरकार इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति करनी पड़ी. केस हाथ में लेते ही सीबीआई ने 2003 के सितंबर महीने में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार कर लिया।
जांच के दौरान जेल में रॉक कॉन्सर्ट करते थे अमरमणि त्रिपाठी
अमरमणि त्रिपाठी ने सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद जमानत की हर संभव कोशिश की लेकिन अदालतों ने उनकी याचिका को ठुकरा दिया. अमरमणि त्रिपाठी का रसूख इस कदर था कि जब मधुमिता हत्याकांड की जांच चल रही थी तो उन्हें पत्नी के साथ गोरखपुर जेल में रॉक कॉन्सर्ट करते हुआ पाया गया था।
जिस साल जीता चुनाव उसी साल मिली सजा
इसी दौरान 2007 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें जेल में रहते हुए भी अमरमणि त्रिपाठी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में महराजगंज जिले के लक्ष्मीपुर सीट से चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के निकटतम प्रतिद्वंद्वी कौशल किशोर को लगभग 20 हजार वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी।
सीबीआई ने जब जांच शुरू की तो इस दौरान भी गवाहों को धमकाने के आरोप लगे जिस वजह से इस हाई प्रोफाइल हत्या के मामले को देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट हत्या के चार साल बाद 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, भतीजा रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी।
हालांकि इसके बाद भी यूपी के सियासी गलियारों में अमरमणि का दबदबा कभी कम नहीं हुआ. इस हत्याकांड में देहरादून की अदालत ने इन चारों को तो दोषी करार दिया, लेकिन एक अन्य शूटर प्रकाश पांडेय को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
हालांकि बाद में नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रकाश पांडेय को भी दोषी पाते हुए इसी मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई।
अपहरण कांड में भी आया था अमरमणि त्रिपाठी का नाम
अब बात अगर अमरमणि त्रिपाठी के राजनीतिक रुतबे की करें तो हत्याकांड में नाम आने से पहले महराजगंज जिले का नौतनवां विधानसभा सीट यूपी के उन चुनिंदा विधानसभा क्षेत्र में शामिल था जहां चुनाव के दौरान पूरे प्रदेश की नजर रहती थी. इसके मुख्य कारण अमरमणि त्रिपाठी ही थे. इस विधानसभा से अमरमणि कई बार विधायक रहे और कल्याण सिंह के सरकार में पहली बार मंत्री बने थे।
हालांकि कल्याण सिंह सरकार में ही एक अपहरण कांड में नाम सामने आने के बाद मुख्यमंत्री सिंह ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक करियर धीरे-धीरे ढलान की तरफ बढ़ता गया. बाद में अमरमणि त्रिपाठी ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अमनमणि को सौंप दी लेकिन वो भी पत्नी की हत्या के मामले में जेल की सज़ा हुई।
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