उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने नंधौर इको सेंसटिव वन क्षेत्र में राज्य सरकार की बाढ़ राहत स्कीम के तहत माइनिंग की अनुमति देने के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की। मुख्य न्यायधीश की खंडपीठ ने मामलों को निस्तारित करते हुए सरकार को आदेश दिए है कि बाढ़ राहत कार्य के लिए नदी से निकलने वाले माइनिंग को वहीं निस्तारित(इस्तेमाल या खत्म) किया जाय बल्कि उसकी क्रशिंग नही की जाए। खण्डपीठ ने राज्य सरकार को यह भी आदेश दिए हैं कि नदी की ड्रेजिंग सरकारी एजेंसियों से ही कराई न कि प्राइवेट से। आज मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की खण्डपीठ में हुई।
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि चोरगलिया निवासी दिनेश कुमार चंदोला व अन्य ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हल्द्वानी के नंधौर क्षेत्र इको सेंसटिव जोन में आता है।
इस क्षेत्र में सरकार ने बाढ़ से बचाव के कार्यक्रम के नाम पर माइनिंग करने की अनुमति प्राइवेट कम्पनियो को दी है। इसका फायदा उठाते हुए खनन कम्पनी ने मानकों के विपरीत खनन किया है। जमा मेटेरियल को क्रशर के लिए ले जाया जा रहा है जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। जनहीत याचिका में कहा गया कि इको सेंसटिव जोन में खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और इको सेंसटिव जोन की नियमावली के विरुद्ध है, लिहाजा इस पर रोक लगाई जाए। राज्य सरकार ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नही किया है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -
GKM News is a reliable digital medium of latest news updates of Uttarakhand. Contact us to broadcast your thoughts or a news from your area. Email: [email protected]