सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण की फर्जी FIR खारिज _आरोपी को हर्जाना देगी सरकार,UP पुलिस को फटकार ..

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उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में दर्ज एक धर्मांतरण मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए एफआईआर को फर्जी करार दिया और संविधान की धारा 226 के तहत उसे रद्द कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत के आरोप लगाए और कानून का गलत इस्तेमाल किया।

मामला बहराइच के एक व्यक्ति से जुड़ा है, जिसे उत्तर प्रदेश प्रोहिबिशन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्ज़न एक्ट और भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के तहत गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि वह लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन करवाने वाले गैंग का हिस्सा है। पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी की पत्नी उसके “धर्मांतरण गतिविधियों” से परेशान होकर घर छोड़ गई थी।

हालांकि, जांच के दौरान जब पत्नी का बयान सामने आया, तो उसने स्पष्ट कहा कि वह अपने पति की हिंसक प्रवृत्ति से परेशान होकर घर छोड़ी थी धर्मांतरण से उसका कोई लेना-देना नहीं था। इसके बावजूद एफआईआर में जबरन धर्मांतरण के आरोप जोड़ दिए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने जब पूरा मामला अपने सामने देखा, तो पाया कि पुलिस के पास न कोई सबूत था और न ही आरोपों को साबित करने का कोई ठोस आधार। अदालत ने इसे “कानून के दुरुपयोग” का साफ उदाहरण बताते हुए एफआईआर को खारिज कर दिया।

न्यायालय ने न सिर्फ आरोपी को राहत दी, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित को ₹75,000 बतौर हर्जाना अदा करे।

सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

अदालत ने सुनवाई के दौरान राज्य पुलिस पर सख्त नाराज़गी जताई और कहा “यह साफ उदाहरण है कि किस तरह राज्य में पुलिस झूठे मामलों का इस्तेमाल कर अपनी छवि चमकाने और तथाकथित ‘ब्राउनी पॉइंट्स’ हासिल करने की कोशिश करती है।”

(ब्राउनी पॉइंट्स का अर्थ है — बिना वास्तविक कार्य किए, दिखावटी उपलब्धियों से खुद को श्रेष्ठ साबित करना या किसी को खुश करने के लिए झूठी उपलब्धि दिखाना।)

इस फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया है कि धर्मांतरण विरोधी कानून का उपयोग किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने या व्यक्तिगत बदले के लिए नहीं किया जा सकता। कानून जनता की सुरक्षा के लिए है, न कि उसके उत्पीड़न के लिए।

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