उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून का मसौदा तैयार,जानिए कमेटी सरकार को कब सौंपेगी ड्राफ्ट..

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उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए तैयार हो रही ड्राफ्ट रिपोर्ट प्रदेश सरकार को शुक्रवार को नहीं सौंपी जा सकी। ड्राफ्ट कमेटी की सदस्य जस्टिस(रिटायर्ड) रंजना प्रसाद देसाई ने आज दिल्ली में इस संबंध में मीडिया से बात की।

उन्होंने कहा कि मुझे आपको यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि उत्तराखंड के प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का मसौदा अब पूरा हो गया है। ड्राफ्ट के साथ विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जल्द ही मुद्रित की जाएगी और उत्तराखंड सरकार को सौंपी जाएगी। माना जा रहा है कि एक पखवाड़े के भीतर समिति सरकार को रिपोर्ट सौंप देगी।

उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर चर्चाओं के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान सामने आया है. सीएम धामी ने कहा कि यूसीसी को लेकर ड्राफ्ट लगभग बनकर तैयार हो गया है. इसके लिए ड्राफ्ट कमेटी ने हर वर्ग के लोगों से बात की है. ड्राफ्ट आने के बाद इसका अवलोकन किया जाएगा और फिर जो भी आगे की कार्रवाई होगी वो की जाएगी. सीएम धामी ने कहा कि ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि बाबा साहेब ने धारा 44 में जिन बातों का जिक्र किया है उन्हें लागू करने का अवसर हमें मिल रहा है।

सीएम पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यूसीसी का ड्राफ्ट बनाने वाले कमेटी ने एक साल से लोगों के बीच जाकर काम किया है. दो लाख से ज्यादा लोगों से बात की गई है. अनेकों स्टेक होल्डरों, विभिन्न संगठनों, धार्मिक संगठनों के लोगों और तमाम बुद्धिजीवियों से इसे लेकर बात की गई है, जिसके आधार पर ड्राफ्ट तैयार हो रहा है. सीएम धामी ने कहा, ड्राफ्ट लगभग पूरा होने की और है, जैसे ये हमें मिलेगा इसका अवलोकन किया गया जाएगा, सभी से चर्चा होगी और फिर जो आगे की कार्रवाई होगी वो की जाएगी।

इन बातों का खासतौर पर जिक्र
जानकारों की मानें तो उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड के ड्राफ्ट में जनसंख्या नियंत्रण को शामिल किया गया है. सूत्रों का दावा है कि समवर्ती सूची की एंट्री 20A के आधार पर इसे शामिल किया जा रहा है. तैयार किए गए ड्राफ्ट में दो बच्चों का नियम रखा गया है. इसका उल्लंघन करने वाले लोगों को वोट डालने का अधिकार नहीं दिए जाने की बात कही गई है. देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए ये फैसला लिया गया है।

समान नागरिक संहिता से आएगा इन मामलों पर असर

शादी की उम्र

यूसीसी में सभी धर्मों की लड़कियों की विवाह योग्य उम्र एक समान करने का प्रस्ताव है। पर्सनल लॉ और कई अनुसूचित जनजातियों में लड़कियों की विवाह की उम्र 18 से कम है। यूसीसी के बाद सभी लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ सकती है।

विवाह  रजिस्ट्रेशन : 

देश में विवाह को पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है। यूसीसी में सुझाव है कि सभी धर्मों में विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। इसके बिना सरकारी सुविधा का लाभ नहीं दिया जाएगा।

बहुविवाह : 

कई धर्म और समुदाय के पर्सनल लॉ बहुविवाह को मान्यता देते हैं। मुस्लिम समुदाय में तीन विवाह की अनुमति है। यूसीसी के बाद बहु-विवाह पर पूरी तरह से रोक लग सकती है।

लिव इन रिलेशनशिपः

 इसके लिए घोषणा करने के बाद अभिभावकों को भी बताना होगा। इसके साथ सरकार को ब्योरा देना जरूरी हो सकता है।

हलाला और इद्दत खत्म: 

मुस्लिम समाज में हलाला और इद्दत की रस्म है। यूसीसी के कानून बनाकर लागू किया तो यह खत्म हो जाएगा।

तलाक : 

तलाक लेने के लिए पत्नी व पति के आधार अलग-अलग हैं। यूसीसी के बाद तलाक के समान आधार लागू हो सकते हैं।

भरण – पोषण

पति की मौत के बाद मुआवजा राशि मिलने के बाद पत्नी दूसरा विवाह कर लेती है और मृतक के माता-पिता बेसहारा रह जाते हैं। यूसीसी का सुझाव है कि मुआवजा विधवा पत्नी को दिया जाता है, तो बूढ़े सास-ससुर के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी उस पर होगी। वह दूसरा विवाह करती है तो मुआवजा मृतक के माता-पिता को दिया जाएगा।

गोद लेने का अधिकार: 

यूसीसी के कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा।

बच्चों की देखरेख : 

यूसीसी में सुझाव है कि अनाथ बच्चों की गार्जियनशिप की प्रक्रिया को आसान व मजबूत बनाया जाए।

उत्तराधिकार कानून: 

कई धर्मों में लड़कियों को संपत्ति में बराबर का अधिकार हासिल नहीं है। यूसीसी में सभी को समान अधिकार का सुझाव है।

जनसंख्या नियंत्रण: 

यूसीसी में जनसंख्या नियंत्रण का भी सुझाव है। इसमें बच्चों की संख्या सीमितकरने, नियम तोड़ऩे पर सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित करने का सुझाव है।

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