उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने अपने पूर्व के एक आदेश की अवमानना करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनिताल और हरिद्वार के जिलाधिकारियों को अवमानना का नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की एकलपीठ में हुई।
मामले के अनुसार, हल्द्वानी चोरगलिया निवासी भुवन चन्द्र पोखरिया ने अवमानना याचिका दायर कर कहा कि उत्तराखंड में बरसात के दौरान नदियां उफान में रहती हैं। इन नदियों के मुहाने अवरुद्ध होने के कारण बाढ़ और भूकटाव की स्थिति पैदा होती है। इससे, आबादी क्षेत्र में जलभराव(बाढ़) हो जाता है। बाढ़ के कारण हजारों हैक्टेयर वन भूमि, पेड़, सरकारी योजनाएं बह जाती हैं।
नदियां, चैनेलाइज नहीं होने के कारण रुख बदलकर आबादी की तरफ आ धमकती है। इसके कारण उधम सिंह नगर, हरिद्वार, हल्द्वानी, रामनगर, रुड़की और देहरादून में बाढ़ की स्थिति उतपन्न हो जाती है। पिछले वर्ष भी बाढ़ से कई पुल बह गए थे। आबादी क्षेत्रों में बाढ़ आने का मुख्य कारण सरकार की लापरवाही है। सरकार ने नदियों के मुहानों पर जमा गाद, बोल्डर, मलवे को नही हटाया है।
अवमानना याचिका में कहा कि गया है कि सरकार ने उच्च न्यायलय के 14 फरवरी 2023 के आदेश का अनुपालन नहीं किया है। जिसकी वजह से प्रदेश में बाढ़ जैसी स्थिति उतपन्न हुई है और सरकार को एक हजार करोड़ रुपये का नुकशान बाढ़ आपदा से हुआ है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार सम्बंधित विभागों को साथ लेकर नदियों से गाद, मलुवा और बोल्डर हटाकर उन्हें चैनेलाइज करे, तांकि बरसात में नदियों का पानी बिना रूकावट के बह सके। लेकिन अभी तक सरकार ने न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया।
जबकि कुछ महीनों के बाद बरसात का सीजन शुरू हो जाएगा। अवमानना याचिका में न्यायालय ने नैनीताल और हरिद्वार के जिलाधिकारियों को पक्षकार बनाया है। भुवन चंद पोखरिया ने अपनी याचिका की पैरवी खुद की।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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