उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने विधानसभा सचिवालय के सौ से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगा दी है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण ने पूर्व प्रमुख सचिव डीके कोटिया की अध्यक्षता में बनाई समिति की सिफारिशों के आधार पर इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी का निर्णय लिया था।
यह सब तदर्थ कर्मचारी हैं। बीते दिवस न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने इन कर्मचारियों को सुनवाई का मौका नहीं देने पर नाराजगी जताई थी और विधानसभा से इस बिंदु पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।
उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने सरकार को बड़ा झटका दिया है..हाईकोर्ट की एकलपीठ ने विधानसभा में बैकडोर नियुक्तियों के मामले में सरकार के 27 से 29 सितंबर के आदेश पर रोक लगा दी है साथ ही कोर्ट ने सरकार समेत अन्य पक्षकारों से जवाब मांगा है। इस रोक के बाद इन कर्मचारियों को फिलहाल बड़ी राहत है और नौकरी वापस मिलने का रास्ता वापस मिला है। हालांकि कोर्ट ने सरकार को लिबर्टी दी है कि चाहे तो वो सभी सभी नियुक्तियां सही तरीके से कर सकती है।
आपको बतादें की पिछले दिनों विधानसभा में हुई बैकडोर से भर्तियों पर लगभग 228 के करीब लोगों को सेवा समाप्ति कर दी थी। जिसको भूपेंद्र सिंह बिष्ट समेत अन्य ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि साल 2002 से लगातार विधानसभा के पदों पर तदर्थ नियुक्तियां हुई हैं और 2014 तक कि नियुक्तियों को नियमित भी कर दिया गया और उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया। याचिका में कहा गया है कि हम भी नियमित पदों के सापेक्ष काम कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि विधानसभा नियमावली में है कि 6 महीने सेवा के बाद नियमितीकरण का प्रावधान है लेकिन हमारे लिए इसकी भी अनदेखी की गई है। और बिना कोई कारण बताए बिना सुनवाई के एक जैसा सैंकड़ों आदेश पारित कर दिए और लगभग 228 लोगों की सेवा समाप्त कर दी।
याचिका में सेवा समाप्ति यानि नौकरी से हटाने के आदेश को निरस्त करने की मांग है तो कर्मचारियों ने सेवा बहाली की मांग की है। वहीं कर्मचारियों ने नियमित करने की मांग की है।
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