कैसी सुरक्षा का वादा , जब रक्षक ही भक्षक बन जाये!

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संविधान की कैसे होती अवहेलना

अपनी बात कहने पर, मुकदमा दर्ज की धमकी

उत्तराखंड पुलिस के (GKM news, वरिष्ठ संवाददाता )कर्मचारियों की दिन-प्रतिदिन जनता के साथ अभद्रता की शिकायतों पर पुलिस मुख्यालय की चुप्पी कहीं किसी बड़ी घटना को अंजाम तक न पहुँचा दे, जब तक संभाले तब तक उत्तराखंड पुलिस की छवि पर कही बदनुमा दाग न लग जाये।

जनता से अभद्रता करने वाले पुलिसकर्मियों को उचित दंड ना मिलने पर उनके हौसले जिस तरीके से बुलंद होते जा रहे हैं उससे उत्तराखंड की मित्र पुलिस का जो नारा आज उत्तराखंड में सुनाई देता है

उत्तराखंड पुलिस आपकी मित्र

वही नारा कहीं शत्रु पुलिस में ना बदल जाए यदि समय रहते पुलिस मुख्यालय नहीं चेता तो दिन प्रतिदिन ऐसी घटनाओं में वृद्धि होती चली जाएगी ,
यदि किसे दवाब में जांच के आदेश हो भी जाते है तो ताज्जुब की बात तो यह है कि जिस क्षेत्र के पुलिस कर्मी द्वारा जनता के साथ अभद्रता की शिकायत की जाती है उसी क्षेत्र के थाना प्रभारी क्षेत्राधिकारी या पुलिस अधीक्षक से जांच कराई जाती है अपने ही अधीनस्थ कर्मचारी को बचाने के लिए सभी अधिकारी एकजुट हो जाते हैं ऐसे में दोषी कर्मी को सजा कैसे मिल सकती है यह तो पुलिस मुख्यालय ही जाने, क्योंकि जब “सैय्या बहे कोतवाल तब डर काहे का ” तब न्याय मिलने की क्या उम्मीद रखी जाएगी इसके लिए क्या कहे,

सबसे ज्यादा शिकायत है राजधानी में देखने में आ रही है जहां पुलिस हर उस शख्स को अपराधी मान बैठी है जो शख्स एक स्कूटी में अपनी बहन को ले जाता है तो पुलिसकर्मी उससे जो व्यवहार करता है जैसे वो प्रेमी प्रेमिका जोड़े हो, उनसे अभद्रता करने में भी नही चूकते है, ओर अभद्रता भी उस दर्ज़े की की मानवता भी शरमा जाए, उत्तराखड के जाबाज पुलिस कर्मियी की पूछताछ के नाम पर युवती से अभद्रता पर , यदि युवती का भाई अपने राखी के धर्म को निभाते हुवै पुलिस कर्मियों से भिड़ता है तो उस थाना छेत्र के पुलिस कर्मियों का गैंग इकट्ठा हो कर उसकी वो धुनाई करता है है कि बहन हाथ फैला कर अपने भाई की जान बख्शने की दुहाई की भीख उनके पैरो पर गिर कर उनसे मांगती है,प्लीज़ अंकल झूठा मुकदमा दर्ज न करे, इसके बाद पुलिसिया गैंग उनसे कोई भी कार्यवाही न करने का पत्र लिखा कर उनको रुक्सत कर देते हैं,पिटे भाई बहन चुप चाप अपने आप खून का घूट पी कर अपने माता पिता को भी नही बताते हैं।
यही सच्चाई है,

यदि फिर भी किसी ने आवाज उठाई तो रस्सी का साँप बनाने में माहिर मित्र पुलिस उनपे ही आरोप लगा देती है कि हमारी वर्दी पर हमला किया था या वर्दी उतारने की धमकी दे रहे हैं। और अपने आला अधिकारियों को गुमरहा कर देते हैं ,अब ऐसे में शिकायत करने का क्या फायदा होगा जब पिटे भाई बहन को ही पुलिसिया अंदाज में पहले ही अपराधी बना दिया जाता है।

आज ऐसी घटनए राजधानी में आम हों गई है पुलिसिया ख़ौफ से आम जान अब मानने लगा है उत्तराखंड पुलिस का मित्र पुलिस का नारा ढाकोसला बन गया है। अपनी बात कहने का मतलब पुलिस की पिटाई या मुकदमा दर्ज की धमकी।

वरिष्ठ अधिवक्ता आर एस राघव भी कहते हैं कि संविधान की धारा 21 में स्पष्ट है हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का मौलिक अधिकार है जिसे सुनने के लिए सरकारी सेवक बाध्य हैं , सर्वोच्च न्यायालय भी मौलिक अधिकारों पर कई बार केंद्र सरकार को दे चुका है दिशा निर्देश , (मेनका गांधी v/s केंद्र सरकार का निर्णय इसका उदाहरण ) पर उत्तराखंड पुलिस तौबा तौबा कुछ भी कर सकती है यदि सलामती चाहते हैं जुल्म के बाद भी खामोश रहो।

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