सिर्फ उत्तराखण्ड के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मिसाल बन रहा है यह सरकारी स्कूल.देखे..
नैनीताल भीमताल (GKM न्यूज़ विनोद कांडपाल) उत्तराखण्ड में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की हालात किसी से छुपे नही है, आज के समय मे अभिभावक अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों का रुख कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बीच उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सूर्या गांव के स्कूल को आप देखेंगे तो आपको यकीन नही होगा की यह स्कूल सरकारी है या प्राइवेट , यहां के शिक्षकों और बच्चों ने अपनी मेहनत से स्कूल को इतनी बुलंदियों तक पहुंचा दिया है कि हर कोई यह कहने पर मजबूर है कि सरकारी स्कूल हो तो सूर्या गांव जैसा…..देखिये ये रिपोर्ट…
भीमताल ब्लॉक के सूर्या गांव का यह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय दुर्गम इलाके में है स्कूल आठवीं क्लास तक है , यहां मात्र 25 बच्चे पढ़ रहे हैं 3 टीचर है. सरकारी स्कूल का नाम सुनते ही आपके जेहन में क्या आता है. खस्ताहाल बिल्डिंग गंदगी बदहाल शिक्षा व्यवस्था या फिर बच्चों को कोई खास जानकारी नहीं, लेकिन दुर्गम इलाके में होने के बावजूद इस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को देखते ही सरकारी स्कूलों के प्रति आपकी मानसिकता बिल्कुल बदल जाएगी. यहां सब कुछ मॉडर्न जैसा है. स्कूल की साफ सफाई से लेकर बैठने की व्यवस्था क्लासरूम तकनीकी शिक्षा या फिर पीटी या अन्य क्रियाकलाप सब कुछ हट कर है.
यहां पढ़ रहे बच्चे मानते हैं कि शिक्षक उन पर बहुत मेहनत करते हैं.अपने बलबूते सबकुछ स्कूल में वह उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं,जिससे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और बच्चे भी शिक्षकों की कसौटी पर खरा उतरने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. शिक्षकों की इसी मेहनत का परिणाम है कि गांव का एक भी बच्चा किसी दूसरे स्कूल में नहीं जाता.
बयान:- कंचन , छात्रा
बयान:- करन कुमार , छात्र
पढ़ाई के सांथ सांथ इस स्कूल के बच्चे खेल में भी अव्वल है स्कूल की प्रिंसिपल खुद एथलीट कर चुकी हैं, लिहाजा उनके बच्चे कहां पीछे रहने वाले हैं. स्कूल में कोई कोच नही है लिहाज़ा जिस बच्चे को कभी कोच ने सिखाया होगा वही दूसरे बच्चो को चेन बनाते हुए सिखाता जा रहा है.
25 बच्चों में से 16 स्कूली बच्चों ने राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया जबकि स्कूल के एक बच्चे ने बॉक्सिंग में गोल्ड मेडल भी जीता और दो बच्चे नेशनल गेम्स में भी प्रतिभाग कर आए लिहाजा स्कूल के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है.
बयान:-सन्तोष कुमार जोशी , शिक्षक
दुर्गम क्षेत्र में होने के कारण स्कूल में संसाधनों का भारी अभाव है लिहाजा सीमित संसाधनों के चलते शिक्षक स्कूल को मॉडल बनाने का प्रयास लगातार कर रहे हैं. गांव का हर बच्चा स्कूल आता है और शिक्षकों के साथ मिलकर स्कूल को बेहतर बनाने में जुटा़ रहता है. बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ कंप्यूटर और अन्य तकनीकी जानकारी भी बराबर दी जाती है. मॉडल बनाना बेकार पड़ी हुई चीजों को कैसे उपयोग में लाया जाता है यह सिखाना, यही नहीं इसके सांथ सांथ कुमाऊ की संस्कृति ऐपण और परंपरागत चीजों की जानकारी भी स्कूल में बच्चों को दी जा रही है. जिसको देखते हुए यहां की शिक्षिका को शिक्षा के क्षेत्र में सबसे बड़े पुरस्कार शैलेश मटियानी पुरस्कार से भी नवाजा जा रहा है.
बयान:-लक्ष्मी काला ,प्रभारी प्रधानाध्यापिका
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