उत्तराखंड क्रिकेट में भ्रष्टाचार पर हाईकोर्ट में सुनवाई, 22 करोड़ का फंड कहां गया…


उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन को बी.सी.सी.आई.से मिले फंड का दुरुपयोग करने और उस फंड को सही से उपयोग नहीं करने संबंधी याचिकाओं में सुनावाई करने या न करने पर सुनवाई कल भी जारी रखी है। वरिष्ठ न्यायमूति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने मामले को सुने जाने या न सुने जाने के सवाल पर सुनवाई कल भी जारी रखी है।
आज हुई सुनवाई पर एसोसिएशन की तरफ से कोर्ट के सामने यह प्रश्न उठाया गया कि ये याचिकाएं सुनवाई योग्य नही है। इसलिए इन्हें निरस्त किया जाय। जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि एसोसिएशन ने बीसीसीआई के द्वारा जारी फंड का दुरुपयोग किया है, जो फंड फिया गया वह प्रदेश के खेल को बढ़ावा व खिलाड़ियों को सुविधा देने के लिए दिया गया था।
यहां न तो खिलाड़ियों को सुबिधा मिली न ही उस हिसाब से खेलों का आयोजन हुआ। जो सदस्य इसके खिलाफ थे एसोसिएशन ने उन्हें बाहर कर दिया। पूर्व के आदेश पर आज बीसीसीआई ने भी अपना पक्ष रखा। उनके द्वारा कोर्ट से प्रार्थना की गई कि मामले की अगली सुनवाई की तिथि दो सप्ताह बाद कि तिथि नियत की जाय।
जिसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि जो याचिकाएं उनके द्वारा कोर्ट में दायर की गई हैं। उनका बाद में सुनवाई होने पर कोई औचित्य नही रह जायेगा । इसलिए मामले की अंतिम सुनवाई कल की जाय। हुई सुनवाई पर याचिकाकर्ताओं के द्वारा कोर्ट में यह प्रश्न भी उठाया कि एसोसिएशन ने प्रीमियर लीग का ठेका बिना उसे सावर्जनिक किये उसे एक ही कम्पनी के मालिक को दे दिया।
दोनों पक्षो को सुनने के बाद कोर्ट ने मामले की अंतिम सुनवाई कल भी जारी रखी है।कोर्ट ने दोनों पक्षकारों से पूछा है कि किस आधार पर रिट याचिकाएं मेन्टीलेबल है या नही अपनी अपनी प्रतिक्रिया से कोर्ट को अवगत कराएं।
मामले के अनुसार डॉक्टर बुद्धि चन्द रमोला, धीरज भंडारी व संजय गुसाईं ने उच्च न्यायलय में याचिका दायर कर कहा है कि 2006 उत्तराखण्ड क्रिकेट बोर्ड का गठन हुआ था। जिसको 2019 में बीसीसीआई से मान्यता मिली। तब से बीसीसीआई ही इसके संचालन करने के लिए फंड देता आया है।
2019 से अब तक बीसीसीआई 22 करोड़ से अधिक फंड बोर्ड को दे चुका है। लेकिन उस फंड का न तो खिलाड़ियों की सुविधाओं व न ही खेल में उपयोग किया गया। जो भी सदस्य बोर्ड में रहे उस फंड का उपयोग उनके द्वारा अपने निजी हित मे किया। खेल के नाम पर उनके द्वारा खिलाड़ियों का पेट भरने के लिए केले व पानी से भर दिया।
अब होने वाले उत्तराखण्ड क्रिकेट प्रीमियर लीग का ठेका एक ही कम्पनी के मालिक को दिया गया। जो कि नियमो के विरुद्ध है। एक आदमी एक ही टेंडर डाल सकता है। इससे जो दो करोड़ रुपये बोर्ड को आने थे उसे भी बोर्ड के सदस्यों ने माफ कर दिया , यही नही मैच के दौरान फ्रेंचाइजी कम्पनियां जो अपने उत्पादों का विज्ञापन करने का पैसा देते हैं । उसे भी माफ कर दिया।
याचिकाओ में कोर्ट से प्राथर्ना की है कि इस पूरे मामले की जाँच कराई जाय। जो प्रीमियर लीग कराने का टेंडर एक कम्पनी को दिया गया उसे भी सावर्जनिक किया जाय। जिसे आज तक सार्वजनिक नही किया गया।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती


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