उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ सैकेट्री से तीन सप्ताह में अपना व्यक्तिगत शपथपत्र पेश करने को कहा है।
मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर.सी.खुल्बे की खण्डपीठ ने शपथपत्र में यह बताने को कहा है कि 2018 में उच्च न्यायलय के आदेशों का क्या हुआ ? जनहित याचिका में कहा गया है कि –
1 – माननीय उच्च न्यायलय ने 13 जनवरी 2018 में सरकार को निर्देश दिए थे कि राज्य में चली आ रही 157 वर्ष पुरानीH राजस्व पुलिस व्यवस्था छः माह में समाप्त कर अपराधों की विवेचना का काम सिविल पुलिस को सौप दिया जाय।
2 :- छः माह के भीतर राज्य में थानों की संख्या व सुविधाएं उपलब्ध कराएं। सिविल पुलिस की नियुक्ति के बाद राजस्व पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नही करेगी और अपराधों की जाँच सिविल पुलिस द्वारा की जाएगी।
3:- कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि राज्य की जनसँख्या एक करोड़ से अधिक है और थानों की संख्या 156 है जो बहुत कम है । कुल 64 हजार लोगों पर एक थाना है, इसलिए थानों की संख्या को बढ़ाया जाए तांकि अपराधों पर अंकुश लग सके।
4:- एक सर्किल में दो थाने बनाये जाने को कहा था, और थाने का संचालन एक सब इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी करेगा।
वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने नवीन चन्द्र बनाम राज्य सरकार मामले में इस व्यवस्था को समाप्त करने की आवश्यकता समझी गयी थी। इसमें कहा गया कि राजस्व पुलिस को सिविल पुलिस की भांति ट्रेनिंग नही दी जाती, यही नही राजस्व पुलिस के पास आधुनिक साधन, कम्प्यूटर, डी.एन.ए.और ब्लड टैस्ट , फोरेंशिक जाँच ,फिंगर प्रिंट जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नही होती है। इन सुविधाओं के अभाव में अपराध की समीक्षा करने में परेशानियां होती है। कोर्ट ने कहा था कि राज्य में एक समान कानून व्यवस्था हो जो नागरिकों को मिलना चाहिए। जनहित याचिका में कहा गया कि अगर सरकार ने इस आदेश का पालन किया होता तो अंकिता मर्डर केश की जाँच में इतनी देरी नही होती। इसलिए राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त किया जाय। इस मामले में समाधान 256 कृष्णा विहार लाइन न एक जाखन देहरादून वालो ने जनहीत याचिका दायर की है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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