मेहनत इतनी ख़ामोशी से करो की कामयाबी शोर मचा दे….मीराबाई चानू ASP मणिपुर ..
मणिपुर : कहते है कि वक़्त बदलते देर नहीं लगती, आपकी मेहनत आपको ऊंची बुलंदियों पर पहुचा देती हैं और जिसने बचपन से गरीबो देखी हो अगर वह सफलता के मुकाम पर पहुंच जाये तो बात की कुछ और है.
कुछ ऐसी ही कहानी भारत की बेटी मीराबाई चानू की है, जिसने टॉक्यो ओलम्पिक के ज़रिये पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है.उनकी कामयाबी को देखते हुए उनके गृह राज्य मणिपुर ने उनका भव्य स्वागत किया.
मणिपुर राज्य सरकार ने तोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतकर लौटी भारोत्तोलक मीराबाई चानू का एक भव्य समारोह में स्वागत किया. हवाई अड्डे पर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह , उनकी सरकार के मंत्री, विधायक , अधिकारी , मीराबाई के परिवार के सदस्य, दोस्त और प्रशंसक मौजूद थे.मीराबाई हवाई अड्डे से मणिपुर राज्य सरकार के सम्मान समारोह में शामिल होने पहुंची, जिसकी मेजबानी मुख्यमंत्री ने की थी. मुख्यमंत्री ने उन्हें एक करोड़ रूपये का चेक और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (खेल) के पद पर नियुक्ति का पत्र सौंपा.
मीराबाई के तोक्यो में पदक जीतने के बाद ही उन्होंने इस पुरस्कार की घोषणा की थी.समारोह में मीराबाई के माता पिता, उनके बचपन की कोच अनिता चानू और राज्य सरकार के कुछ मंत्रियों ने भाग लिया. इसके बाद मीराबाई अपने गांव रवाना हो गई.इससे पहले तोक्यो ओलंपिक में 49 किग्रा वर्ग में सिल्वर मेडल जीतने वाली भारतीय भारोत्तोलक मीराबाई चानू आज राजधानी दिल्ली पहुंचीं, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. मीराबाई के दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंचने पर सुरक्षा बलों ने उन्हें सुरक्षा घेरे में लिया जहां भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के अधिकारियों ने उनका सम्मान किया.
एयरपोर्ट पर चानू को गॉर्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया. दिल्ली में मीराबाई चानू और उनके कोच विजय शर्मा को केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और केंद्रीय मंत्री जीके रेड्डी, पूर्व खेल मंत्री किरेन रिजिजू और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और निसिथ प्रमाणिक ने सम्मानित किया.
मीराबाई चनू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में हुआ था. शुरुआत में मीराबाई का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से से उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुनना पड़ा. मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चनू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है. मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता. वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की की मास्टर रही हैं. मीराबाई बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं. लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया. दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरान देवी का जिक्र था. बता दें कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं.
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