उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्लास्टिक से निर्मित कचरे पर प्रतिबंध लगाए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सचिव पंचायतीराज को निर्देश दिए हैं कि सभी ग्राम पंचायतों को कूड़ा निस्तारण की सुविधा उपलब्ध कराकर रिपोर्ट न्यायालय में पेश करें।
मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खण्डपीठ ने राज्य सरकार को ये भी निर्देश दिए हैं कि प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के उस नियम जिसमें इसका उलंघन करने पर पांच हजार से दो करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है, उसको लागू कर रिपोर्ट पेश करें। मामले की अगली सुनवाई 19 मई को तय की गई है।
सुनवाई के दौरान सचिव शहरी विकास, सचिव पंचायतीराज, सचिव वन एवं पर्यावरण और निदेशक शहरी विकास व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए। उनकी तरफ से कहा गया कि न्यायालय के आदेशों का पालन किया जा रहा है।
आज सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि महीने में पाँच दिन जहाँ जहाँ कूड़ा फैला रहता है वहां एक टीम जांच करे जिसमें प्रदूषण बोर्ड, पुलिस, शहरी विकास और जिला प्रशासन के सदस्य मौजूद रहे। वो कूड़ा फैलाने वालों के खिलाफ जुर्माना लगाकर उसकी वसूली कर उसकी भी रिपोर्ट न्यायालय में पेश करें।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने न्यायालय को अवगत कराया कि कुछ लोगों ने कूड़ा निस्तारण के लिए आवंटित भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है। गाँव मे कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था उपलब्ध नही है।
मामले के अनुसार अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी। परन्तु इन नियमों का पालन नही किया जा रहा है।
2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे जिसमे उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व बिक्रेताओ को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे। अगर नही ले जाते है तो सम्बंधित नगर निगम , नगर पालिका व अन्य फण्ड देंगे जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सकें। परन्तु उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए है और इसका निस्तारण भी नही किया जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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