सर्दी में उजाड़े गए आशियाने,मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल, राज्यपाल को ज्ञापन..

हल्द्वानी –
जनपद नैनीताल के रामनगर तहसील अंतर्गत पूछड़ी क्षेत्र में मूलनिवासी समाज के लोगों के कथित जबरन विस्थापन का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। मूलनिवासी संघ उत्तराखंड ने इसे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताते हुए प्रदेश अध्यक्ष दीपक चनियाल के नेतृत्व में नगर मजिस्ट्रेट के माध्यम से महामहिम राज्यपाल को ज्ञापन प्रेषित किया।
ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि पूछड़ी क्षेत्र में अनुसूचित जाति, ओबीसी, मुस्लिम एवं अन्य वर्गों के लोग बीते लगभग 50 वर्षों से निवासरत हैं। इनमें नवजात शिशु, 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, बीमार बुजुर्ग और महिलाएं भी शामिल हैं। इसके बावजूद दिसंबर की कड़ाके की ठंड में बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए वन विभाग एवं पुलिस बल द्वारा बुलडोजर से घरों को ध्वस्त कर लोगों को खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर कर दिया गया।
संघ का कहना है कि प्रभावित परिवारों द्वारा मामले से जुड़े वैध दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने के बावजूद उन्हें नजरअंदाज किया गया, जो कि अमानवीय और संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है। ज्ञापन में स्पष्ट किया गया है कि भारतीय संविधान और कानून के अनुसार, किसी भी नागरिक को विस्थापित करने से पूर्व वैकल्पिक पुनर्वास की व्यवस्था अनिवार्य है, भले ही निवास को अवैध क्यों न माना जाए।
मूलनिवासी संघ ने यह भी सवाल उठाया कि इसी जनपद के बिंदुखत्ता, बागजाला और रानीबाग–भीमताल मार्ग पर बने अनेक निर्माणों पर न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। ऐसे में पूछड़ी में हुई कार्रवाई को संघ ने मूलनिवासी समाज के प्रति भेदभावपूर्ण और द्वेषभाव से प्रेरित बताया है।
संघ ने राज्यपाल से मांग की है कि प्रभावित परिवारों को तत्काल वैकल्पिक आवास उपलब्ध कराया जाए और उन्हें न्याय दिलाया जाए। चेतावनी दी गई है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो संघ प्रदेशव्यापी आंदोलन करेगा और आवश्यकता पड़ने पर देशव्यापी स्तर पर संघर्ष तथा माननीय न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दायर की जाएगी, जिसकी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
ज्ञापन पर दीपक चनियाल (प्रदेश अध्यक्ष) किशन चंद्र (कोषाध्यक्ष) जी.आर. आर्य (जिलाध्यक्ष नैनीताल) आर.पी. गंगोला (जिला प्रभारी)और नफीस अहमद खान (मीडिया प्रभारी) के हस्ताक्षर हैं।
साथ ही इस प्रकरण पर मुख्यमंत्री उत्तराखंड, मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग और बाल अधिकार संरक्षण आयोग (राज्य एवं केंद्र) से तत्काल संज्ञान और द्रुत कार्रवाई की मांग की गई है।


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