उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वर्ष 2016-17 के बीच रहे जिलाधिकारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान 18 स्टोन क्रेशरों के अवैध खनन एवं भंडारण पर लगाये 50 करोड़ रुपये से अधिक के जुर्माने माफ करने संबंधी जनहित याचिका में सुनवाई करते हुए सचिव खनन से कहा है कि 30 सितंबर तक वर्ष 2016 से अबतक राज्य में ऐसे मामलों में माफ जुर्मानों की जानकारी मांगी।
मुख्य न्यायधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने इस रिपोर्ट के साथ स्वयं न्यायालय में उपस्थित होने को कहा है। न्यायालय ने पूर्व में सेकेट्री खनन से आज हाजिर होने को कहा था लेकिन अस्वस्थ होने के कारण वो नहीं आ सके और उनकी जगह एडिशनल सेकेट्री लक्ष्मण सिंह उपस्थित हुए।
आज न्यायालय ने सरकार से मौखिक रूप से कहा कि राज्य की जेलों में सुविधाओ के लिए सरकार के पास बजट नहीं है लेकिन स्टोन क्रेशरों का करोड़ों का जुर्माना किस आधार पर माफ किया गया ? कैदियों की दिहाड़ी ठीक नही दी जा रही है।
सुनवाई पर याचिकाकर्ता ने कहा कि तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसी बिंदु पर 186 लोगों पर जुर्माना आरोपित किया गया। लेकिन डी.एम.ने 18 स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ किया अन्य का क्यों नही किया गया ? उनमें तो पल्लीदार, खच्चर व बैलचे वाले भी थे, जिनकी रोजीरोटी उसी से चलती थी। कहा कि उनका चालान और क्रेशरों का माफ, माफ भी 2 से 6 करोड़ का ?
मामले के अनुसार चोरगलिया निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी ने कई स्टोन क्रेशरों का अवैध खनन और भंडारण का जुर्माना जो लगभग 50 करोड़ रुपये से अधिक था को माफ कर दिया।
आरोप लगाया कि जिलाधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ किया जिनपर जुर्माना करोड़ो में था, लेकिन उनका जुर्माना माफ नहीं किया जिनका जुर्माना कम था।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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