हल्द्वानी : पिता बेहोशी की हालत में पहुंच चुके थे। लीवर खराब हो गया था और जिंदगी की डोर अब केवल लीवर ट्रांसप्लांट पर टिक गई थी। स्वजनों के कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मां ने जब लीवर ट्रांसप्लांट डोनेट करने की लिए जांच कराई तो फैटी लीवर निकला। उम्मीद और धुधंली होती जा रही थी, लेकिन उदास हो चुकी बेटी पायल ने हिम्मत दिखाई और अपना लीवर डोनेट कर पिता के लिए जीवनदायिनी बन गई।
मूल रूप से बागेश्वर के काकड़ा खोली व अब नीलांचल कालोनी निवासी 53 वर्षीय बिपिन कांडपाल बीएसएसफ (सीमा सुरक्षा बल) से सेवानिवृत हैं। 2011 से सिक्योरिटी एजेंसी संचालित कर रहे हैं। हल्द्वानी के अस्पतालों से रेफर होकर मरीज को स्वजन एम्स नई दिल्ली ले गए। वहां से पहले इंस्टीट्यूट आफ लीवर एंड बिलियरी साइंसेज (आइएलबीएस) और फिर मेदांता ले गए, लेकिन जब लीवर पाने की सारी कोशिश असफल हो गई तो 22 वर्षीय बेटी पायल आगे आई।
उसे डाक्टरों ने लीवर ट्रांसप्लाट के खतरे के बारे बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन बेटी ने पिता को नई जिंदगी देने की जिद ठान ली थी। रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली से आप्टोमैट्री की पढ़ाई कर रही पायल ने अपनी बात मनवा ली। देवी बन बेटी ने पिता को अपना लीवर दान कर दिया और पिता को नई जिंदगी मिल गई।
अब वह स्वस्थ होकर अस्पताल से घर आ चुके हैं। आत्मविश्वास से लबरेज पायल को एक माह के आराम की सलाह दी गई है। मंगलवार को हमारे संवाददाता से बातचीत में कहती हैं, पिता को बीमारी की अवस्था में देखना मेरे लिए बहुुत कष्टदायक था। मैंने सोचा, जांच करवाई और लीवर डोनेट कर दिया। पिता को स्वस्थ होते देख पायल के चेहरे से खुशी झलक रही है।
बेटी के निर्णय व त्याग की सर्वत्र सराहना
एमबीपीजी कालेज में प्रोफेसर रहे डा. संतोष मिश्रा ने अपने फेसबुक पोस्ट में पायल की हिम्मत की तारीफ करते हुए लिखा है, पहाड़ की बेटी, पिता को अंग देकर जीवनदायिनी बन जाती है। बिटिया पायल के निर्णय और त्याग को प्रणाम। पायल की इस निर्णय की हर कहीं सराहना हो रही है। डाक्टरों ने कहा कि पायल मानसिक रूप से भी मजबूत है।
मां, बड़ी बहन व छोटा भाई नहीं दे सके लीवर
पायल की मां विमला कांडपाल फैटी लीवर की वजह और बड़ी बहन विवाहित होने और भाई छोटा होने के चलते लीवर दान नहीं कर सके थे। अब सभी पायल की हिम्मत की तारीफ कर रहे हैं।
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