उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने एन.आई.ओ.एस. डी.एल.एड.संघ के प्रदेशाध्यक्ष की याचिका में आज अपना निर्णय सुनाते हुए न केवल उन्हें राहत दी है बल्कि सरकार पर लापरवाही बरतने के लिए अर्थदंड(पैनल्टी)भी लगा दिया है।
संघ के अध्यक्ष ने सरकार से प्रार्थना की है कि उनके संघ को भी लंबित प्राथमिक शिक्षक भर्ती में शामिल किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आर.सी.खुल्बे की खंडपीठ ने आज 14 जुलाई से सुरक्षित रखे आदेश में निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता और एन.आई.ओ.एस.डी.एल.एड.संघ के प्रदेशाध्यक्ष नंदन सिंह बोहरा ने बताया कि सरकार डी.एल.एड.के लगभग 37000 प्रशिक्षण प्राप्त अभियर्थियों को मान्यता नहीं देती है। इसलिए उन्हें सरकारी नौकरी में नियुक्ति नहीं मिलती है। उन्होंने वर्ष 2021 में एन.आई.एस. डी.एल.एड.प्रशिक्षण प्राप्त अभियार्थी संघ की तरफ से याचिका दायर कर अपनी प्रार्थना रखी। न्यायालय ने सरकार और प्रार्थी की बात सुनने के बाद मामले को बीती 14 जुलाई को सुरक्षित रख लिया था। बोहरा ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने आज आदेश को सुनाते हुए संघ की मांग को जायज ठहराया। न्यायालय ने मांगों को न्यायोचित मानते हुए एन.आई.एस. डी.एल.एड.के पक्ष में निर्णय दिया है। बोहरा ने बताया कि न्यायालय ने नियुक्ति नहीं करने पर सरकार पर अर्थदंड भी लगाया है। उन्होंने सरकार से प्रार्थना की है कि लंबित प्राथमिक शिक्षक भर्ती में एन.आई.ओ.एस. डी.एल.एड.को शामिल करते हुए नियुक्ति दी जाएं। बोहरा ने कहा कि इस मामले में लंबे समय से आदेश प्रतीक्षारत था।
मामले के अनुसार याची सरकार के
एन.आई.ओ.एस.डी.एल.एड.प्रशिक्षण प्राप्त अभियर्थियो को मान्य नहीं करने के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका लेकर पहुंचे थे। इसमें आज न्यायालय ने याची के पक्ष में निर्णय सुनाया है। न्यायालय ने शिक्षा सचिव के 10 फरवरी 2021 के लांग डिस्टेंस एजुकेशन के अभियर्थियों को अर्ह नहीं मानने के आदेश पर रोक लगाते हुए उनके 18 माह के कोर्स को 24 माह के रेग्युलर कोर्स के समतुल्य माना है।
वरिष्ठ पत्रकार कमल जगाती
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